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________________ २४६ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास इसी प्रकार उवर्णान्त शब्दों मेंसूत्रसंख्या ८६-१३२ तक पञ्चपादी के प्रथम पाद के सूत्र " ॥ ५३३- " द्वितीय , , , " , १३४-१५४ ॥ " , तृतीय , , , , , १५५-१५६ , , , चतुर्थं , ,, , " , १६०-१६२ , , , पञ्चम , , , इसी प्रकार सम्पूर्ण ग्रन्थ में तत्तद् वर्णान्त शब्दों के साधक सूत्रों का संकलन पञ्चपादी के तत्तत् पादस्थ सूत्रों के क्रम से ही किया है। इससे स्पष्ट है कि दशादी पाठ का मूल आधार पञ्चपादी पाठ है। १० इसमें निम्न हेतु भी द्रष्टव्य हैं __ क-पञ्चपादी पाठ में अनेक ऐसे सूत्र हैं, जिनमें नकारान्त शब्दों के साधत्व प्रदर्शन के साथ-साथ उन णकारान्त शब्दों का निर्देश भी है, जिनमें रेफ आदि को निमित्त मान कर अन्त्य न वर्ण ण वर्ण में परिवर्तन हो जाता है । यथा१५ पञ्चपादी २।४८ में 'इनच्' प्रत्ययान्त--श्येन, स्तेन, हरिण, और अविन शब्दों का साधुत्व दर्शाया हैं। पञ्चपादी २ । ७६ में 'युच्' प्रत्ययान्त-सवनः, यवनः, रवणः, वरणम् शब्दों का निर्देश है। इसी प्रकार पञ्चपादो के जिन सूत्रों में णकारान्त और नका२० रान्त शब्दों का एक साथ निदर्शन कराया है, उन सब सूत्रों को दश पादीकार ने ढकारान्त शब्दों के अनन्तर संगृहीत किया है। और इस प्रकरण के अन्त में (सूत्र-वृत्ति २६४) णकारो नकारसहित: कह कर उपसंहार किया है। इससे भी स्पष्ट है कि दशपादी उणादिसूत्रों का पाठ किसी अन्य पुराने पाठ पर आश्रित है । यदि दशपादी का अपना २५ स्वतन्त्र पाठ होता, तो उसका प्रवक्ता णकारान्त और नकारान्त शब्दों के साधन के लिए पृथक्-पृथक् सूत्रों का ही प्रवचन करता, दोनों का सांकर्य न करता। ख-दशपादी पाठ में नवम पाद के अन्त में हकारान्त शब्दों का संकलन पूरा हो जाता है । दशम पाद में उन सूत्रों का संकलन
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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