________________
उणादि-सूत्रों के प्रवक्ता और व्याख्याता २४३ इस दृष्टि से स्वामी दयानन्द सरस्वती की यह स्वल्पाक्षरावृत्ति संपूर्ण उणादि वाङ्मय में मूर्धाभिषिक्त है।
वृत्ति का आधारभूत मूल सूत्रपाठ-स्वामी दयानन्द सरस्वती ने उणादि के जिस पाठ पर वृत्ति लिखी है, वह उज्ज्वलदत्त पाठ से बहुत भिन्नता रखता है। इस वृत्ति का आधारभूत सूत्रपाठ एक हस्तलेख पर आश्रित है । यह हस्तलेख स्वामी दयानन्द सरस्वती के हस्त. लेख संग्रह में विद्यमान था। हमने इसे वि० सं० १९९२ में श्रीमतो परोपकारिणी सभा अजमेर के संग्रह में देखा था। इस हस्तलेख में सूत्रपाठ के साथ-साथ सूत्रों के उदाहरण भी निर्दिष्ट हैं। स्वामी दयानन्द सरस्वती ने जो उणादिकोष छपवाया है, उस में इस हस्तलेख के पाठ को सर्वथा उसी रूप में सुरक्षित रखा है । अर्थात् ऊपर हस्तलेखानुसार सूत्रपाठ और उदाहरण दिए हैं, तथा नीचे अपना वृत्ति ग्रन्थ पृथक् छापा है।
इस हस्तलेख तथा उस पर आश्रित मुद्रित सूत्रपाठ में अनेक स्थानों पर सूत्रपाठ के स्थान पर किसो वृत्ति ग्रन्थ का संक्षिप्त पाठ ... निर्दिष्ट है । यथा__क-उणादिकोष ३।६७ पर सूत्रपाठ है-दधाद्वित्वमित्वं षुक च । यह स्पष्ट किसी वृत्ति का पाठ है । वहां मूल सूत्रपाठ दधिषाय्यः होना चाहिए।
ख-उणादिकोष ४।२३७ पर सूत्रपाठ है-सर्तेरप्पूर्वादसिः। १० यह भी किसी वृत्ति का पाठ है । यहां पर मूल सूत्रपाठ अप्सरा होना चाहिए। ___ग-इसी प्रकार उणादिकोष ४।२३८ पर सूत्रपाठ है-विदिभुजिभ्यां विश्वेऽसिः । यह पाठ भी किसी वृत्ति का संक्षेप है।
सूत्र २३० में तथा २३८ दोनों में 'असि' प्रत्यय का समान रूप .. से निर्देश होना इस बात का ज्ञापक है कि ये दोनों सूत्र रूप से स्वीकृत पाठ भी किसी वत्ति के अंश हैं। इनमें सत्तरप्पूर्वादसि पाठ इसी रूप में उज्ज्वलदत्त की उणादिवृत्ति ४।२३६ में उपलब्ध होता है।
वृत्ति में पाठभ्रंश-स्वामी दयानन्द की वृत्ति का जो पाठ वैदिक यन्त्रालय अजमेर का छपा मिलता है, उसमें पाठभ्रंश अत्यधिक हैं। ३०