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उणादि-सूत्रों के प्रवक्ता और व्याख्याता
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दीक्षित विरचित प्रौढमनोरमा से अत्यधिक सहायता ली है। यह दोनों ग्रन्थों के तुलनात्मक अध्ययन से स्पष्ट है। कई स्थान ऐसे भी हैं, जहां तत्त्वबोधिनी का आश्रयण भी किया है। परन्तु ग्रन्थकार ने इन दोनों ग्रन्थों का अथवा इनके लेखकों का कहीं भी निर्देश नहीं किया। ग्रन्थ-लेखन में ऐसा व्यवहार अशोभनीय है।
यह वृत्ति उणादि ४।१५६ तक ही मद्रास से प्रकाशित हुई है । क्योंकि इसका आधारभूत हस्तलेख भी यहीं तक हैं। उसका अगला भाग सम्भवतः खण्डित हो गया है।
१५-नारायण सुधी नारायण नाम के किसी वैयाकरण ने अष्टाध्यायी की प्रदीप १० अपरनाम शब्दभूषण नाम्नी व्याख्या लिखी है। इसके हस्तलेख तजौर के पुस्तकालय में सुरक्षित हैं ।
परिचय-नारायण के वंश तथा काल आदि के विषय में हमें कुछ भी ज्ञात नहीं । शब्दभूषण के तृतीयाध्याय के द्वितीयपाद के अन्त में निम्न पाठ मिलता है_ 'इति गोविन्दपुरवास्तव्यनारायणसुधिविरचिते सवातिकाष्टाध्यायीप्रदीपे शब्दभूषणे तृतीयाध्यायस्य द्वितीयः पादः।'
इसमें नारायण ने अपने को गोविन्दपुर का वास्तव्य लिखा है। भारत में गोविन्दपुर नाम के अनेक स्थान हैं ।
नारायण नाम के अनेक वैयाकरण विभिन्न ग्रन्थों के लेखक हो २० चके हैं। अतः विशेप परिचय के अभाव में इस नारायण का निश्चय करना और इसके काले का निर्धारण करना कठिन है।
१. यथा-पाद १ श्लोक २६३, २६४; पाद ३ श्लोक ७८, ७६; २०५, २०६, ३०६; ३२१, ३३७ तथा सूत्रपाठ; पाद ४, श्लोक १८६-१९१; २०४, २८८, २८९; ३४३, ४३२ ॥ इन सूत्रों की प्रोटमनोरमा भी देखिए। २. प्रौढमनोरमा में अनिर्णीत '
कृरादेश्च चः' सूत्रपाठ (पृष्ठ ११८) तत्त्ववोधिनी से लिया है।
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