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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
१४–पेरुसूरि (वि० सं० १७६०-१८००) पेरुसूरि नाम के वैयाकरण ने उणादिपाठ पर एक श्लोकबद्ध व्या. ख्या लिखी है । इसका नाम 'प्रोणादिकपदार्णव' है।
परिचय-पेरुसूरि ने ग्रन्थ में अपना जो परिचय दिया है, उसके '५ अनुसार माता-पिता दोनों का श्रीवेङ्कटेश्वर समान नाम है।' यह 'श्रीधर' वंश का है', और इसके गुरु का नाम वासुदेव अध्वरी है।'
देश-पेरुसूरि ने अपने को काञ्चीपुर का वास्तव्य कहा है।'
काल-पेरुसूरि ने अपने गुरु का नाम वासुदेव अध्वरी लिखा है। यही वासुदेव अध्वरी सिद्धान्तकौमुदी की बालमनोरमा नामक प्रसिद्ध १० टोका का रचयिता है । बालमनोरमा का काल वि० सं० १७४०
१८०० के लगभग माना जाता है। अतः पेरुसूरि का काल वि० सं० १७६०-१८०० के लगभग मानना उचित है।
वृत्ति का वैशिष्ट्य --ग्रन्थकार ने प्रोणादिक पदों का व्याख्यान करते हुए स्थान-स्थान पर उनसे निष्पन्न तद्धित प्रयोगों का भी निर्देश किया है । सूत्रपाठ की शुद्धि पर ग्रन्थकार ने विशेष बल दिया है, और स्थान-स्थान पर अपने द्वारा साम्प्रदायिक = (गुरुपरम्परा-प्राप्त) पाठ के आश्रयण का निर्देश किया है।
अक्षम्य अपराध ---पेरुसरि ने अपनी वत्ति के लिखने में भट्रोजि
है। उसने सं० १६९२ में ४० वर्ष की अवस्था में काशी में उक्त काव्य की २० रचना की थी। द्र०-सं० साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, पृष्ठ २१५ ।
१. जरत्कारू इवान्योन्यमाख्ययानन्ययौत्सुको श्रीवेङ्कटेश्वरी मातापितरौ ... ॥ पृष्ठ १। २. इति श्रीघरवंश्येन रचिते पेरुशास्त्रिणा । पृष्ठ १२१ ।
३. अवतीर्ण हरिं वन्दे वासुदेवाघ्वरिच्छलात् । तच्छिष्योऽहम् । ...। पृष्ठ १।
४. पृष्ठ १ श्लोक २। २५ ५. द्र० सं०व्या० शास्त्र का इतिहास का १६ वां अध्याय 'सिद्धान्त कौमुदी के व्याख्याता' प्रकरण।
६. यथा--साम्प्रदायिकोऽयं पाठः । पृष्ठ १॥ तैस्तैर्वृत्तिकारः कानिचित् सूत्राणि अधिकानि व्याख्यातानि । सूत्रक्रमभेदश्च तत्र भूयान् परिदृश्यते, पाठभेदाश्च भूयांसः, इति साम्प्रदायिक एवाश्रित इत्यलं बहुना । पृष्ठ ८० ॥