________________
उणादि-सूत्रों के प्रवक्ता और व्याख्याता
२३५
किया होगा। परिभाषवृत्तिव्याख्या के आरम्भ में अनेक शास्त्रवित् 'त्र्यम्बक यज्वा' और उसके पुत्र काकोजि का उल्लेख किया है। ये शाहजी के सचिव आनन्दराय मखी के पूर्वज थे।
रामभद्र दीक्षित का एक शिष्य श्रीनिवास स्वरसिद्धान्तमञ्जरी का कर्ता हैं। ___ काल-रामभद्र ने उणादिवृत्ति में लिखा है कि उसने यह उणादिवृत्ति शाहजी भूपति को प्रेरणा से लिखी है।' शाहजी का राज्यकाल वि० सं० १७४०-१७६६ तक माना जाता है । कतिपय ऐतिहासिक राज्य का प्रारम्भ वि० सं० १७४४ से मानते हैं । अतः रामभद्र का काल भी वि० सं १७४४ के लगभग मानना उचित है।
रामभद्र की अभ्यर्थना-रामभद्र ने उणादिवृत्ति के अन्त में लिखा
है
'वातुप्रत्ययनियोज्य टोकासर्वस्वनियोज्य मनोरममा नियोज्य शोधनीयमिदम् ।'
१५
१३-वेन्टेश्वर (वि० सं० १७६० के समीप) वेङ्कटेश्वर नाम के लेखक ने उणादिसूत्रों की उणादिनिघण्टु नाम को एक वृत्ति लिखो है । इसका एक हस्तलेख मद्रास राजकीय हस्तलेख पुस्तकालय के सूचीपत्र में क्रम संख्या ४७३२ पर निर्दिष्ट है । दूसरा हस्तलेख तजौर के हस्तलेख संग्रह के सूचीपत्र भाग ६ पृष्ठ ३७४८ पर उल्लिखित है।
वेङ्कटेश्वर रामभद्र दीक्षित का शिष्य हैं। अत: वेङ्कटेश्वर का काल वि० सं० १७६० के आसपास समझना चाहिए।'
वेङ्कटेश्वर ने रामभद्र दीक्षित के 'पतञ्जलि-चरित' पर भी टीका लिखी है।
१. भोजो राजति भोसलान्वयमणिः श्रीशाह-पृथिवीपतिः॥६॥ रामभद्र- २५ मखी तेन प्रेरित: करुणाब्धिना प्रबन्धमेतत कुरुते प्रौढानां प्रीतिसिद्धये ॥७॥
२. रामचन्द्रोदय महाकाव्य का कर्ता वेङ्कटेश्वर भिन्न व्यक्ति प्रतीत होता