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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
भूलें हैं । प्रथम-ग्रन्थ का नाम 'उणादिकोश' है, 'अनादि कोश' नहीं। द्वितीय-यह व्याकरण ग्रन्थ है, कोश ग्रन्थ नहीं । प्रतीत होता है
लेखक ने इस ग्रन्थ का अवलोकन विना किये ही उक्त उल्लेख किया - है। गैरोलाजी का अंग्रेजी भाषाविज्ञों के अनुकरण पर महादेव वेदा. ५ न्तिन्-चन्द्रगोमिन् आदि पदों का प्रयोग करना भी चिन्त्य है।
१२-रामभद्र दीक्षित (सं० १७१०-१७६० वि० के लगभग)
रामभद्र दीक्षित ने उणादिपाठ पर एक व्याख्या लिखी है। इस व्याख्या का नाम उणादि मणिदीपिका है। इस ग्रन्थ का एक हस्तलेख
तजौर के पुस्तकालय में विद्यमान है। प्राफेक्ट ने अपने बृहत् सूची१० पत्र में लेखक का नाम रामचन्द्र दीक्षित लिखा है । यह वृत्ति सन् १९७२
में मद्रास विश्वविद्यालय से मुद्रित हो गई है। इसके सम्पादक डा० के कुञ्जनी राजा हैं । यह वृत्ति दूसरे पाद के ५० वें सूत्र तक ही छपी है । सम्भव है सम्पादक के पास हस्तलेख इतना ही होगा।
परिचय-रामभद्र दीक्षित के पिता का नाम यज्ञराम दीक्षित था। १५ इसके पूरे परिवार का सचित्र वर्णन हमने इस ग्रन्थ के प्रथम भाग
पृष्ठ ४६४ (च० सं०) पर किया है। रामभद्र दीक्षित के गुरु का नाम चोक्कनाथ मखी है। यह रामभद्र का श्वशुर भो है। रामभद्र ने स्वयं लिखा है
'शेषं द्वितीयमिव शाब्दिकसार्वभौमम् ।
श्रीचोक्कनाथमखिनं गुरुमानतोऽस्मि ॥" रामभद्र ने सीरदेवीय परिभाषावृत्ति की व्याख्या में अपना जो परिचय दिया है, तदनुसार वह भोसला वंश के शाहजी भूपति अर्पित शाहपुर नाम के अग्रहार (ब्रह्मण-वसति) का निवासी है। शाहजी भूपति ने यह अग्रहार रामभद्र अथवा उसके पिता यज्ञराम को अर्पित
२५ । १. इति श्रीरामभद्रदीक्षितस्य कृती उणादिमणिदीपिकायां प्रथमः पादः ।
२. हस्तलेख संग्रह सूची भाग १०, पृष्ठ ४२३६, ग्रन्थाङ्क ५६७५ ।
३. परिभाषावृत्ति व्याख्या के आरम्भ में। अडियार पुस्तकालय, व्याकरण विभाग सूचीपत्र, संख्या ५०० ।