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२/३० उणादि-सूत्रों के प्रवक्ता और व्याख्याता २३३ और आर्या को पूरा भी नहीं किया। इसलिए महादेव वेदान्ती पेरुसूरि से उत्तरवर्ती है। ___ महादेव वेदान्ती का काल उसकी विष्णुसहस्रनाम की टीका से प्रायः निश्चित है । इसी प्रकार पेरुसूरि का काल भी प्रायः निश्चित है । पेरुसूरि ने अपने गुरु का नाम वासुदेव अध्वरी लिखा है । वासुदेव अध्वरी ने तुक्कोजी के राज्य-काल में बालमनोरमा व्याख्या लिखी है। यह वासुदेव अध्वरी चोल (तजौर) के भोसलवंशीय शाहजी, शरभजो, तुक्कोजी नामक तीन राजारों के मंत्री सार्वभौम आनन्दराय का अध्वर्य था। इन तीनों का राज्यकाल वि०सं०१७४४-१७६३ तक माना जाता है, अतः वासुदेव अध्वरी का काल सामान्यतः वि० सं० १७५०-१८०० तक माना जा सकता है । पेरुसूरि वासुदेव अध्वरी का शिष्य है । अतः इसका काल सं १७५० से उत्तरवर्ती होगा। ऐसी अवस्था में हमें महादेव वेदान्ती को पेरुसूरि का पूर्ववर्ती मानना अधिक उचित जंचता है। और महादेव वेदान्ती के उणादिकोष का प्रभाव पेरुसूरि के प्रोणादिकपदार्णव पर मानना पड़ता है।
उणादिवृत्ति का नाम-महादेव की उणादिवृत्ति का नाम निजः विनोदा है। वह लिखता हैं
इत्युणादिकोशे निजविनोदाभिधेये वेदान्तिमहादेवविरचिते पञ्चमः पादः सम्पूर्णः ।
हमने महादेव वेदान्ती के विषय में जो कुछ लिखा है, वह अधिः . कांशतः श्री पं० रामअवध पाण्डेय द्वारा प्रेषित निर्देशों पर प्राधृत है।
उणादिकोश का सम्पादन-इस वृति का जो संस्करण अडियार (मद्रास) से प्रकाशित हुया है, उसके सम्पादक वी. राघवन है। इस संस्करण में बहुत्र प्रमादजन्य पाठभ्रंश उपलब्ध होते हैं। इसलिए हमारे मित्र पं० रामअवध पाण्डेय ने अन्य कई हस्तलेखों के साहाय्य । से इसका अति परिशुद्ध संस्करण तैयार किया है । यह अभी तक प्रकाशित नहीं हो पाया।
वाचस्पति गैरोला को भूल-वाचस्पति गैरोला ने 'संस्कृत साहित्य का इतिहास' ग्रन्थ के कोश प्रकरण में महादेव वेदान्तिन् विरचित 'अनादिकोश' का उल्लेख किया है (द्र०—पृष्ठ ७८२)। इसमें दो ३०
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