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संस्कृत-व्याकरण शास्त्र का इतिहास
परिचय - महादेव वेदान्ती का उल्लेख वेदान्ती, महादेव, महादेव सरस्वती वेदान्ती के नाम से भी मिलता है । इसके गुरु का नाम स्वयंप्रकाश सरस्वती है ।' महादेव वेदान्ती ने श्रद्धं तचिन्ता कौस्तुभ में स्वयंप्रकाशानन्द सरस्वती नाम लिखा है । तत्त्वचन्द्रिका में सच्चिंदानन्द सरस्वती नाम मिलता है ।
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काल - महादेव वेदान्ती के काल के सम्बन्ध में मतभेद है । रिचर्ड गार्बे ने अनिरुद्ध वृत्ति के उपोद्घात में महादेव वेदान्ती का काल १६०० ई० (वि० सं० १६५७ ) माना है । 'सांख्यदर्शन का इतिहास' के मनस्वी लेखक श्री उदयवीरजी शास्त्री ने महादेव वेदान्ती की सांख्यवृत्ति की प्रनिरुद्धवृत्ति और विज्ञानभिक्षु के भाष्य के साथ तुलना करके महादेव वेदान्ती को अनिरुद्ध से उत्तरवर्ती, और विज्ञानभिक्षु से पूर्ववर्ती अर्थात् १३ वीं शती में माना है । "
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महादेव वेदान्ती ने विष्णुसहस्रनाम की एक टीका लिखी है । उसमें टीका लिखने का काल इस प्रकार उल्लिखित है
खबाणमुनिभूमाने वत्सरे श्रीमुखाभिधे ।
मार्गात तृतीयायां नगरे ताप्यलंकृते ॥
इस श्लोक के अनुसार विष्णुसहस्रनाम की व्याख्या का काल वि० सं० १७५० है ।
इस निश्चित काल के परिज्ञात हो जाने पर श्री शास्त्रीजी का लेख ठीक प्रतीत नहीं होता ।
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हमारे मित्र पं० रामप्रवव पाण्डेय ( वाराणसी ) का विचार है कि महादेव वेदान्ती के उणादिकोश पर पेरुसूरि के प्रौणादिक पदार्णव का प्रभाव है । दोनों के ग्रन्थों की १०% दश प्रतिशत से अधिक पंक्तियां मिलती हैं। सिन ( पं० उ० ३।२ ) शब्द के अर्थ में २५ महादेव ने पेरुसूरि की केवल एक पंक्ति ( श्लोकार्थ) को उद्धृत किया है,
१. श्री मत्स्वयंप्रकाश त्रिलब्धवेदान्तिसत्पदः । विष्णुसहस्रनामव्याख्यो । २. इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्य श्रीमत्स्वयं प्रकाशानन्दसरस्वती मुनिवर्य चूडामणिविरचिते तत्त्वानुसंधानव्याख्याने अद्वैतचिन्ता कौस्तुभे चतुर्थः परि
च्छेद्रः समाप्तः ।
३. सांख्य दर्शन का इतिहास, पृष्ठ ३१३-३१६ ॥