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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
के चंगलपट नामक जिले में बताई है।' इस वृत्ति के हस्तलेख मलावार प्रान्त से उपलब्ध हुए हैं। सम्भव है इन्दु ग्राम मलावार प्रान्त में, रहा हो ।'
__काल-श्वेतवनवासी का काल अज्ञात है । इस वृत्ति के सम्पादक ५ ने श्वेतवनवासी का काल विक्रम की ११वीं शती से लेकर १७वीं
शती के मध्य सामान्य रूप से माना है। हम इसके काल पर विशेष रूप से विचार करते हैं
१-सं० १६१७ से १७३३ वि० तक विद्यमान नारायणभट्ट ने प्रक्रिया सर्वस्व के उणादि प्रकरण में श्वेतवनवासी की. उणादिवृत्ति १० को नामनिर्देश के विना बहुधा उद्धृत किया है, इससे स्पष्ट है कि
श्वेतवनवासी विक्रम की १७वीं शती से पूर्ववर्ती है । यह श्वेतवनवासी की उत्तरसीमा है।
२- श्वेतवनवासी ने अपनी व्याख्या में जिन ग्रन्थकारों को उद्धृत किया है, उनमें कैयट और भट्ट हलायुध का नाम भी है। भट्ट १५ हलायुध ने अभिधानरत्नमाला कोष लिखा था। इसी के उद्धरण
श्वेतवनवासी ने पृष्ठ १२७ तथा २१४ पर दिये हैं । भट्ट हलायुध का काल ईसा की १०वीं शती माना जाता है। कीथ ने अभिधानरत्नमाला का काल सन् ६५० माना है। तदनुसार विक्रम सं० १०००
के आस-पास हलायुध का काल है। श्वेतवनवासी ने कैयट का निर्देश २०
पृष्ठ ६६, १६८ तथा २०४ पर किया है । कैयट का काल सामान्यतथा वि० सं० ११०० से पूर्व है । यह श्वेतवनवासी की पूर्व सीमा है।
३- सायण ने धातुवृत्ति में एक पाठ उद्धृत किया है'कुटादित्वात् ङित्त्वादेव कित्त्वफले सिद्ध किद्वचनं तस्यानित्यत्वज्ञापनार्थम्, तेन धुवतेरित्रप्रत्यये पवित्रमिति गुणो भवतीत्याहुः।' .
२५ पृष्ठ ३३४।
यह पाठ श्वेतवनवासी के निम्न पाठ से मिलता है
१. श्वे० उ० वृत्ति भूमिका,. पृष्ठ १० । २. श्वे० उ० वृत्ति भूमिका, पृष्ठ ११ । ३. कीथ कृत संस्कृत साहित्य का इतिहास, हिन्दी अनुवाद पृष्ठ ४६०.