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उणादि सूत्रों के प्रवक्ता और व्याख्याता
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'यत्तु दिद्याशीलः प्रतिविधौ ' दिविभुजिभ्यां विश्वे' इति पठित्वा विश्वे इति सप्तम्या श्रलुकि दीव्यतेरसि विश्वेदेवाः इति सान्तमुदा
जहार ...
पाठ से प्रतीत होता है कि किसी दिद्याशील नाम के वैयाकरण ने उणादिसूत्रों पर कोई वृत्तिग्रन्थ लिखा था ।
काल - जिस अमरीका में यह पाठ उद्धृत है, उसका काल वि० सं० १५३१ है, यह हम पूर्व कह चुके हैं । इसलिए दिद्याशील वि० सं० १५०० से पूर्ववर्ती है, इतना निश्चित हैं । परन्तु हमारा यह विचार है कि दिद्याशील का काल वि० सं० १२५० के लगभग होगा ।
८ - श्वेतवनवासी (वि० १३ वीं शती)
श्वेतवनवासी नाम के वैयाकरण ने पञ्चपादी उणादिपाठ पर एक उत्कृष्ट वृत्ति लिखी है । यह वृत्ति मद्रास विश्वविद्यालय संस्कृत ग्रन्थमाला में प्रकाशित हो चुकी है ।
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परिचय - श्वेतवनवासी के पिता का नाम आर्यभट्ट था । यह धर्मशास्त्र में पारङ्गत था, और गार्ग्य गोत्र का था । श्वेतवनवासी इन्दुग्राम समीपवर्ती ग्रहार ( ब्राह्मण वसति ) ' का निवासी था । इसके पूर्वज उत्तर मेरु में रहते थे । इन सब बातों का संकेत श्वेतवनवासी ने स्वयं किया है । वह लिखता है -
'इतीन्दुग्रामसमीपवर्त्य प्रहार वास्तव्येन उत्तरमेवंभिजनेन धर्मशास्त्रपारगार्य भट्टसूनुना गाग्र्येण श्वेतवनवासिना विरचितायामुणादि- २० वृत्तौ प्रथमः पादः । '
इन्दु ग्राम की स्थिति अज्ञात है । इस वृत्ति के सम्पादक टी० प्रार० चिन्तामणि ने उत्तर मेरु नामक ग्राम की स्थिति मद्रास प्रान्त
१. मद्रास प्रान्त में 'अग्रहार' शब्द 'ब्राह्मण- वसति' शब्द के लिये प्रयुक्त होता है।
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२. अभिजन उस स्थान को कहते हैं, जहां पूर्वजों ने निवास किया हो । प्रभिजनो नाम यत्र पूर्वैरुषितम् । महा० ४ | ३|०||