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________________ २२६ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास दुर्घटपाठ शरणदेव रक्षित तथा सर्वरक्षित द्वारा संस्कृत दुर्घटवृत्ति में उपलब्ध नहीं होते । उज्ज्वल दत्त ने अपनी टीका में बहुत्र मंत्रेयरक्षित के पाठ रक्षित नाम से उद्धत किए हैं। अतः दुर्घटे रक्षितः वाले पाठ भी मैत्रेयरक्षित के हैं, शरणदेव विरचित दुर्घटवृति के संस्कर्ता सर्वरक्षित के नहीं हैं । इसलिए इन उद्धरणों के आधार पर उज्ज्वलदत्त को सं० १२२६ वि० से उत्तरवर्ती नहीं माना जा सकता। ४-पुरुषकार पृष्ठ २७ में कृष्ण लीलाशुक मुनि उणादिवत्ती' निर्देशपूर्वक उज्ज्वलदत्तीय वृत्ति २।२५ के पाठ की ओर संकेत करता है।' कृष्ण लीलाशुक मुनि का काल सं०१२२५-१३५०वि० के मध्य है।' अतः हमारे विचार में उज्ज्वलदत्त का काल वि० सं० १२०० से उत्तरवर्ती नहीं हो सकता। इसमें एक हेतु यह भी है कि सर्वानन्द द्वारा सं० १२१६ में विरचित अमरटीकासवस्व में विना नाम-निर्देश के उज्जवलदत्तीय उणादिवृत्ति स्मृत है । दोनों के पाठ इस प्रकार हैं टीकासर्वस्द-प्रज्ञाद्यणि चाण्डाल इत्युणादिवृत्तिः ।२।१०।१६॥ उज्ज्वल-उणादिवृत्ति-प्रज्ञादित्वादणि चाण्डाल इत्यपि । ११११६ ॥ वस्तुतः उज्ज्वलदत्त की उणादिवृत्ति में पुरुषोत्तमदेव से अर्वाक्कालिक कोई भी ग्रन्थ अथवा ग्रन्थकार उद्धृत नहीं है। इसलिए उज्ज्वलदत्त ने उणादिवत्ति का प्रणयन पुरुषोत्तमदेव के ग्रन्थप्रणयन २. और टीकासर्वस्व लेखन के मध्य किया है। इसलिए उज्ज्वलदत्त की उणादिवृत्ति का सामान्यतया वि० सं० १२०० के आस-पास ही मानना युक्त है। -- - ७-दिद्याशील (वि० सं० १२५० के लगभग) हमने दामोदर विरचित उणादिवृत्ति के प्रसङ्ग में अमरटीका का २५ जो पाठ उद्धृत किया है उसके १. उणादिवृत्तौ तु सौत्रोऽयं धातुः । २. द्र०–सं. व्या. शा, का इतिहास भाग १, 'भोजदेवीय सरस्वतीकण्ठाभरण' के प्रकरण में ।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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