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२/२६ उणादि-सूत्रों के प्रवक्ता और व्याख्याता २२५ नाम न्यासोद्योत को उद्धृत किया है।' हैंमबृहद्वृत्त्यवचूणि का लेखन-काल वि० सं० १२६४ है। अतः मल्लिनाथ का काल सं० १२५० वि० के लगभग होगा, और मेदिनी कोष का काल उससे भी पूर्व मानना पड़ेगा। ____ग-कल्पद्रुम कोर्ष की भूमिका में मंख की टीका में मेदिनी के ५ उल्लेख का निर्देश है। मंख का काल विक्रम की १२वीं शती का उत्तरार्ध है । 'संस्कृत साहित्य का संक्षिप्त इतिहास' के लेखक पं० सीताराम जयराम जोशी ने लिखा है कि कल्पद्रुम कोष की भूमिका में निर्दिष्टं
'कमिति प्रकृत्य मस्तके च सुखेऽपि चेति अव्ययप्रकरणे मेदिनिः।' १० वचन मेदिनी कोष में उपलब्ध नहीं होता। अतः प्रमाण सन्दिग्ध है। हमारे विचार में पं० सीताराम का कथन युक्त नहीं है। उक्त उद्धरण में अव्यय-प्रकरणे स्पष्ट लिखा है। मेदिनी कोष में अव्यय प्रकरण है। उसमें 'कम्' का निर्देश मान्त में विद्यमान है। अतः मंख ने उक्त उद्धरण मेदिनी कोश से ही लिया है, यह स्पष्ट है।
१५ इस प्रकार मेदिनीकार का काल विक्रम की १२वीं शती के उत्तरार्ध से पूर्व निर्धारित होता है । इसलिए मेदिनी का निर्देश होने मात्र से उज्ज्वलदत्त का काल १४ वीं शती अथवा उससे पश्चात् नहीं माना जा सकता।
३-उज्ज्वलदत्त उणादिवृत्ति में दो स्थानों पर दुर्घटे रक्षित: २० (११५७;३।१६०) लिख कर दुर्घटवृत्ति का निर्देश करता है । शरणदेव ने दुर्घटवृत्ति सं० १२२६ वि० में लिखी थी। अत: उज्ज्वलदत्त का समय सं० १२२६ वि० से उत्तरवर्ती होना चाहिए।
वस्तुतः यह हेतु भी अशुद्ध है। उज्ज्वलदत्त द्वारा उद्धृत दोनों १. तन्त्रोद्योतस्तु शतहायनशब्दस्य कालवाचकत्वाभावे ।
२. संवत् १२६४ वर्षे श्रावण शुदि ३ रवी श्रीजयानन्दसूरिशिष्येणाऽमरचन्द्रेणाऽऽत्मयोग्याऽवचूणिकायाः प्रथम पुस्तिका लिखिता । पृष्ठ २०७ ।
३. सं० सा० का संक्षिप्त इतिहास, पृष्ठ ५५२ । ४. सं० सा० का संक्षिप्त इतिहास, पृष्ठ ५५२ । ५. कं पादपूरणे तोये मस्तके च सुखेऽपि च ।