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संस्कृत व्याकरण - शास्त्र का इतिहास
नाम से उद्धृत किए हैं ।' शरणदेव ने दुर्घटवृत्ति में स्पष्ट रूप से पुरुषोत्तमदेव के नाम से उसकी उणादिवृत्ति की प्रोय संकेत किया है ।"
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पुरुषोत्तमदेव के काल के विषय में इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में पृष्ठ ४२९ ( च० सं०) पर विस्तार से लिख चुके हैं। इस विषय में पाठक वही देखें । वाचस्पति गैरोला ने अपने 'संस्कृत साहित्य का इतिहास' ग्रन्थ में पृष्ठ ७८१ पर पुरुषोत्तमदेव का काल ७वीं शती ई० लिखा है, वह सर्वथा चिन्त्य है ।
५ - सूती वृत्तिकार ( वि० सं०
१२०० ) उज्ज्वलदत्त ने उणादिसूत्र ३।१४० की वृत्ति में लिखा है'सूत्रमित्रं सूतीवृत्तौ देववृत्तौ च न दृश्यते ।' पृष्ठ १३८ । अर्थात् -सूतीवृत्ति और देव ( पुरुषोत्तमदेव ) की वृत्ति में दोङो नुट् च सूत्र नहीं है ।
यहां पञ्चपादी सूत्र के विषय में, और वह भी पञ्चपादी - वृत्तिकार पुरुषोत्तमदेव की देववृत्ति के साथ निर्दिष्ट होने से उज्ज्वलदत्त १५ द्वारा निर्दिष्ट सूतोवृत्ति पञ्चपादी पाठ पर ही थी, यह निश्चित है | इस वृत्ति और इसके लेखक के विषय से हम इससे अधिक कुछ नहीं जानते ।
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६ - उज्ज्वलदच (१३वीं शती वि० का आरम्भ )
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उज्ज्वलदत्त ने पञ्चरादी उणादिपाठ पर एक विस्तृत वृत्ति
२० लिखी हैं । यह वृत्ति सम्प्रति उपलब्ध हैं। थोडेर ग्राफेक्ट ने इस वृत्ति
का प्रथमतः सम्पादन किया था ।
परिचय - उज्ज्वलदत्त ने अपना कुछ भी परिचय नहीं दिया ।
१. पृष्ठ १२८, १३२, १३८, २१७, कलकत्ता संस्करण ।
२. पुरुषोतम देवस्तु लाज्याहाम्य:' ( तु० उ० ४ । ५१ ) इत्यत्र २५ म्लेवातुमपि पठति । दुर्घटवृत्ति, पृष्ठ ६८ ।