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उणादिसूत्रों के प्रवक्ता और व्याख्याता
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' तथा च इह मूर्धन्यान्त एव दामोदरसेनस्य शाब्दिकसिहत्वात् । इस उल्लेख से विदित होता है कि इस उणादिवृत्तिकार का पूरा नाम दामोदरसेन था ।
५.
काल - उक्त अमरीका का काल वि० सं० १५३१ है । सृष्टिधर का काल भी विक्रम की १५वीं शती है। दामोदर को उज्ज्वलदत्त ने भी उणादिवृत्ति में स्मरण किया है । उणादिवृत्ति के प्रारम्भ में उपाध्यायसर्वस्व का भी निर्देश किया है । सर्वानन्द के निर्देशानुसार उपाध्याय सर्वस्व दामोदर विरचित है।" सुभूतिचन्द्र ( ? ) ने दामोदर का निर्देश गोवर्धन और पुरुषोत्तमदेव के मध्य में किया है । इससे स्पष्ट है कि वह इनका समकालिक है ।
एक दामोदरसेन आयुर्वेद का प्रसिद्ध विद्वान् है । उसका काल विक्रम की १२वीं शती माना जाता है । हमारे विचार में यही दामो - M दरसेन उपाध्याय - सर्वस्व और उणादिवृत्ति का रचयिता है। अतः दामोदर का काल निश्चय ही वि० सं० १२०० के लगभग अथवा उससे कुछ पूर्व है ।
दामोदर बंगवासी है । अत: उसकी उणादिवृत्ति प्राच्यपाठ पर थी, यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है ।
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१. पुरुषोत्तमविरचित परिभाषावृत्ति आदि के उपोद्घात में पृष्ठ २१ पर दिनेशचन्द्र भट्टाचार्य द्वारा उद्धृत ।
४ - पुरुषोत्तमदेव (सं० १२०० वि० )
पुरुषोत्तमदेव ने उणादिपाठ पर एक वृत्ति लिखी थी । उज्ज्वलदत्त ने इस वृत्ति के अनेक उद्धरण अपनी उणादिवृत्ति में देववृत्ति के
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४. तथा च वाहो विश्वभुजयोः पुमान् इति दामोदरः । पृष्ठ १४ ।
५. उपाध्यायस्य सर्वस्वम्.... ......। द्वितीय श्लोक ।
६. एतच्चोपाध्याय सर्वस्वे दामोदरेणोक्तम् | भाग २ पृष्ठ १६७ ।
२. सेनानीवदनग्रहाग्निविधुभि: ( १३६६ ) शाके मिते हायने, शुक्र मास्यसिते दिनाधिपतितिथौ सौरेऽह्नि मध्यन्दिने ।
३. द्र० सं० व्या० शास्त्र का इतिहास, भाग १ ( भाषावृत्ति व्याख्याता २५ सृष्टिघर' प्रकरण ।