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________________ २२० संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास अमरटीका में गोवर्धन को पारायण-परायण कहा है।' यतः गोवर्धन बंग प्रान्तीय है, अतः उसकी टीका पञ्चपादी के प्राच्य पाठ पर थी, यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है। यह वृत्ति सम्प्रति अनुपलब्ध है। ३. दामोदर (सं० १२०० वि० से पूर्व) वैयाकरण दामोदर ने उणादिपाठ पर कोई वृत्ति ग्रन्थ लिखा था। सुभूतिचन्द्र' (?) की अमरटीका के निम्न उद्धरण से व्यक्त होता है___'यत्तु विद्याशीलः अप्तिविघौ दिविभुजिभ्यां विश्व (तु०४।२३७) १० इति पठित्वा विश्वे' इति सप्तम्या अलुकि दीव्यतेरसि विश्वेदेवाः इति सान्तमुदाजहार स तस्य विपर्यस्तदृशोर्दोषेण हस्तामणं, तत्रव पारायण-परायणैर्गोवर्धन-दामोदर-पुरुषोत्तमादिभिः विदिभजिभ्यां विश्व इति वृत्ति पठित्वा विश्वं वेत्ति विश्ववेदाः इति, 'पाशुप्रषीति' ( १ । १५१ ) क्वविधौ विश्वं जगत् विश्वेदेवा इत्युदाहृत्वात् ।' १५ हस्तलेख पृष्ठ १८ । __इस उद्धरण से स्पष्ट है कि दामोदर ने उणादिपाठ पर कोई वृत्ति ग्रन्थ अवश्य रचा था। दामोदर नाम के अनेक व्यक्ति संस्कृत वाङ् मय में प्रसिद्ध हैं। भाषावृत्ति के व्याख्याता सृष्टिघराचार्य ने ५।१११०० की व्याख्या में २० लिखा है १. तत्रैव पारायण परायणैर्गोवर्धन-दामोदर-पुरुषोतमादिभि-.........। हस्तलेख पृष्ठ १८ । पूरा उद्धरण आगे दमोदर के प्रकरण में देखिए। २. हमने अपनी कापी में आगे उध्रियमाण उद्धरण के साथ 'सुभूतिचन्द्र ? की अमरटीका' ऐसा प्रश्नात्मक चिह्न दे रखा है। अतः हमें इस नाम में २५ सन्देह है। ३. यह प्रमाण हमने किसी त्रैमासिक जर्नल से लिया था, परन्तु उसका नाम और प्रकाशन काल लिखना प्रमादवश रह गया।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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