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उणादि-सूत्रों के प्रवक्ता और व्याख्याता २१९ माना है । कीथ के संस्कृत साहित्य के इतिहास (हिन्दी अनुवाद) के पृष्ठ २३० के टिप्पण में ई० सन् ११७५-१२०० अर्थात् वि० सं० १२३२-१२५७ लिखा है। _ 'संसार के संवत' ग्रन्थ के लेखक जगनलाल गुप्त ने सेन संवत् के प्रारम्भ होने का जो विवरण प्रस्तुत किया गया है, तदनुसार- ५
कोलब्र क के मत में ई० सन् ११०४, वि० सं० ११६१ राजेन्द्रलाल , , , ११०८, ॥ ११६५ कनिंघम , , , , , , " बुकानन ,, ,, , ११०६, ११६६ कीलहान ", " " " " , १० विभिन्न लेखकों ने विभिन्न काल सेन-संवत् प्रारम्भ होने के माने हैं। इसलिए इस आधार पर गोवर्धन का काल निश्चित करना प्रत्यन्त कठिन हैं । स्थूल रूप से इतना ही कहा जा सकता है कि गोवर्धन का काल वि० सं० ११६१ से लेकर १२५७ के मध्य है। - प्रन्यकारों का साक्ष्य-सर्वानन्द ने अमरकोष पर टीकासर्वस्व १५ का प्रणयन वि० सं० १२१६ (शक० १०८१) में किया था।' सर्वानन्द ने इसमें पुरुषोत्तमदेव को नामनिर्देशपूर्वक उद्धृत किया है।' पुरुषोत्तमदेव ने भाषावृत्ति में गोवर्धन को तात्कालिक वैयाकरणों में श्रेष्ठ कहा है। इससे स्पष्ट है कि गोवर्धन पुरुषोत्तमदेव का समकालिक अथवा कुछ पूर्ववर्ती है। इस उद्धरण परम्परा से इतना २० निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि गोवर्धन ने उणादिवृत्ति वि० सं० १२०० के लगभग अथवा उससे कुछ पूर्व लिखी होगी।
गोवर्धन का वैदुष्य-गोवर्धन का लक्ष्मणसेन के सभारत्नों में उल्लेख होना ही उसके विशिष्ट पाण्डित्य का द्योतक है। पुरुषोत्तमदेव ने भाषावृत्ति १।४।८७ में उपगोवर्धनं वैयाकरणाः द्वारा गोवर्धन २५ [को तात्कालिक वैयाकरणों में श्रेष्ठ बताया है। सुभूतिचन्द्र (?) ने
१. अमरटीकासर्वस्व १२४॥२१॥ : २. अमरटीकासर्वस्व, भाग २, पृष्ठ २७७ ।
३. उपगोवर्धनं वैयाकरणा:।