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११८ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
पञ्चपादी के व्याख्याकार
१-भाष्यकार (प्रज्ञात काल) उज्ज्वलदत्त ने अपनी उणादिवृत्ति में किसी अज्ञात नाम, वैयाकरण द्वारा पञ्चपादी पाठ पर लिखे गये भाष्य नामक व्याख्या ग्रम का दो स्थानों पर निर्देश किया है । यथा- ..
१- 'इगुपधात् किरिति प्रमाद पाठः। स्वरे विशेषादिति भाष्यम् ।' ४।११६ पृष्ठ १७५ ।
२-"इह इक इति वक्तव्ये 'अचः' इति वचनं सन्ध्यक्षरादप्याचारक्विबन्ताद् यथा स्यादिति भाष्यम् ।" ४।१३८, पृष्ठ १८१ ।
इस ग्रन्थ वा ग्रन्थकार के विषय में हम इससे अधिक कुछ नहीं जानते।
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२-गोवधन (सं० १२०० वि० से पूर्व) गोवर्धन नाम के वैयाकरण ने उणादिसूत्रों पर एक वृत्ति लिखी थी। इस वृत्ति के उद्धरण सर्वानन्द कृत अमरटीकासर्वस्व, उज्ज्वल१५ दत्त रचित उणादिवृत्ति, भट्टोजि दीक्षित लिखित प्रौढमनोरमा आदि
अनेक ग्रन्थ में मिलते हैं। · परिचय-गोवर्धन ने प्रार्याशप्तशती में अपना कुछ वर्णन किया है। तदनुसार इसके पिता का नाम नीलाम्बर अथवा संकर्षण था।
इसके सहोदर का नाम बलभद्र और शिष्य का नाम उदयन था। यह २० बङ्गाल के राजा लक्ष्मणसेन का सभ्य था
'गोवर्धनश्च शरणो जयदेव उमापतिः ।
कविराजश्च रत्नानि समिती लक्ष्मणसेनस्य ॥' काल-आर्यासप्तशती तथा पूर्वनिर्दिष्ट श्लोक से यह स्पष्ट है कि गोवर्धन महाराज लक्ष्मणसेन का समकालिक है। लक्ष्मणसेन के काल के विषय में ऐतिहासिकों में मत-भेद है। श्री पं० भगवदृत्त जी ने वैदिक वाङमय के इतिहास के 'वेदों के भाष्यकार' नामक भाग के पृष्ठ १०५ पर लक्ष्मणसेन का राज्यकाल वि. सं० १२२७-१२५७