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उणादि-सूत्रों के प्रवक्ता और व्याख्याता २१३ ४-पाणिनीय व्याकरण का आश्रयण करनेवाले अनेक ग्रन्थकारों ने कतिपय ऐसे सूत्र उद्धृत किये हैं, जो दशपादी में ही मिलते हैं । यथा
क--देवराज यज्वा ने 'शाखा' पद के निर्वचन के प्रसङ्ग में निम्न सूत्र उद्धृत किया है
'वृक्षावयवाच्च ।' निघण्टुटीका २।५।१६, पृष्ठ १९८ ।
यह पाठ दशपादी के वृक्षावयव आ च (३१५६) का ही लेखकप्रमादजन्य पाठ है । अन्यत्र यह सूत्र कहीं उपलब्ध नहीं होता।
ख-'नहुष' पद के व्याख्यान में देवराज लिखता है'अकारान्तमिदं नाम केषुचित् कोशेषु, तदा 'ऋहनिभ्यामुषन्' १० इत्युषन् प्रत्ययः ।' निघण्टुटीका २।३।६, पृष्ठ १८० ।
उणादिसूत्र का यह पाठ दशपादी ६।१३ में उपलब्ध होता है। पञ्चपादी ४७८ में पुलिभ्यामुषन् पाठ है।
ग–अमरकोष के व्याख्याकार क्षीरस्वामी, सर्वानन्द, भानुजिदोक्षित प्रभृति ने 'अनड्वान्' पद के निर्वचन (अमर २।६।६०) में १५ - जो सूत्र उद्धृत किया है, वह इस प्रकार है
____ 'अनसि वहेः किबनसो डश्च ।' यह सूत्र केवल दशपादी पाठ में ही मिलता है। वहां इसका पाठ वहेः क्विबनसो डश्च (१०७) है। न्यास ६।१११५८ (भाग २, पृष्ठ २९८) पदमञ्जरी ६।१।१५८ (भाग २, पृष्ठ ५०३) में भी यह सूत्र २० उद्धृत है । वहां इसका पाठ अनसि वहेः क्विब डश्चानसः है। अमरकोष की टीकाओं, न्यास तथा पदमञ्जरी में उद्धृत पाठ सम्भव है अर्थानुवाद रूप हों। परन्तु इन पाठों का मूल दशपादी उणादिसूत्र ही है, यह स्पष्ट है । क्योंकि यह सूत्र पञ्चपादी में किसी रूप में भी उपलब्ध नहीं होता।
५-दशपादी पाठ में इकारान्त से प्रौकारान्त पर्यन्त शब्दों के साधक सूत्रों का पाठ करके प्रकार विशिष्ट कान्त से लेकर हान्त शब्दों के साधक सूत्रों का पाठ मिलता है। यह अन्त्यवर्णानुसारी संकलन प्रकार पाणिनीय लिङ्गानुशासन में भी कोपधः (सूत्र ६०)