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उणादि-सूत्रों के प्रवक्ता और व्याख्याता
ग–पाणिनि बड़े विद्वान् वैयाकरण हो गये ।...''इन महामुनि ने पांच पुस्तकें बनाई- १ शिक्षा, २ उणादिगण, ३ धातुपाठ, ४ प्रातिपदिकगण, ५ अष्टाध्यायी।'
शाकटायन-प्रोक्त मानने में भ्रान्ति का कारण कैयट, श्वेतवनवासी, नागेश भट्ट और वासुदेव प्रभृति वैयाकरणों ५ का पञ्चपादी उणादिसूत्रों को शाकटायन-प्रोक्त मानना भ्रान्तिमूलक है । इस भ्रान्ति का कारण महाभाष्य ३।३।१ का व्याकरणे शकटस्य च तोकम् । वैयाकरणानां च शाकटायन प्राह धातुजं नामेति वचन है।
इस वचन में पतञ्जलि ने केवल इतना ही संकेत किया है कि वैयाकरणों में शाकटायन सम्पूर्ण नाम शब्दों को धातुज मानता है। १० इस संकेत से यह कैसे सूचित हो गया कि कृवापा आदि पञ्चपादी उणादिसूत्र शाकटायन प्रोक्त हैं, यह हमारी समझ में नहीं पाता। भाष्यकार द्वारा संकेतित शाकटायन मत 'सम्पूर्ण नाम धातुज हैं' यास्कीय निरुक्त (१।१२) में भी स्मृत है।
दशपादी पाठ का प्रवक्ता * दशपादी पाठ का प्रवक्ता कौन है ? यह अभी तक निश्चित रूप से अज्ञात हैं । प्रक्रियाकौमुदी के व्याख्याता विट्ठल ने उणादि प्रकरण में दशपादी उणादिपाठ को व्याख्या की है, यह हम पूर्व लिख चुके हैं। पाणिनीय व्याकरण का आश्रयण करनेवाले कतिपय वैयाकरणों ने इस पर वत्तियां भी लिखी हैं। इसके अतिरिक्त इसके पाणिनीयत्व १. में निम्न हेतु भी उपस्थित किये जा सकते हैं
१. ऋ० ८० सं० के शास्त्रार्थ और प्रवचन, पूना का १० वां प्रवचन, पृष्ठ ३८७, पं० १९-२० (रालाकट्र संस्क०)।
२. माणिक्यदेव विरचित दशपादी पाठ की प्राचीन वृत्ति का हमने सम्पादन किया है । यह वृत्ति राजकीय संस्कृत महाविद्यालय (सं० सं० वि० वि०) २५ वाराणसी की 'सरस्वतीभवन ग्रन्थमाला' में छपी है (इस संस्करण के छपने तक वृत्तिकार का नाम संदिग्ध होने से नहीं छापा गया)। इसकी दूसरी वृत्ति हमारे पास हस्तलिखित रूप में विद्यमान है।