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संस्कृत-व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
प्रकारं मुकुरस्यादौ उकारं दर्दुरस्य च ।
बभाण पाणिनिस्तौ तु व्यत्येयेनाह भोजराट् ।। अर्थात्-पाणिनि 'मुकुर' शब्द के आदि में प्रकार (==मकुर)
और 'दर्दुर' शब्द के आदि में उकार (=दुर्दुर) कहता है, और ५ भोजराट् इससे उलटा (=मुकुर-दर्दु र) मानता है।
___ नारायण भट्ट ने यह पंक्ति पञ्चपादी के मकुरदुर्दुरौ (१।४०; पृष्ठ १०) सूत्र की व्याख्या में लिखी है। इससे स्पष्ट है कि नारायण भट्ट इस पाठ को पाणिनीय मानता है। । २-शिशुपालवध का रचयिता माघ कवि लिखता है
'निपातितसुहृत्स्वामिपितृव्यभ्रातृमातुलम् ।
पाणिनीयमिवालोचि धीरैस्तत्समराजिरम् ॥' १९१७५॥ इस श्लोक में सुहृत् स्वामी पितृव्य भ्रातृ मातुल शब्द पाणिनि द्वारा निपातित हैं, ऐसा संकेत किया है । इन शब्दों में 'भ्रातृ' शब्द
उणादिसूत्रों में निपातित है। इससे स्पष्ट है कि माघ कवि किसी १५ उणादिपाठ को पाणिनिप्रोक्त मानता है। शिशुपालवध के प्राचीन
टीकाकार बल्लभदेव ने जो उणादिसूत्र उद्धृत किया है, वह पञ्चपादी सूत्रों के कतिपय पाठों के अनुकूल है। बल्लभदेव की टीका का जो पाठ काशी से छपी है, वह पर्याप्त भ्रष्ट है। इस श्लोक की
व्याख्या में 'भ्रातृ' शब्द के निपातन को बताने के लिए जो उणादिसत्र २० उद्धृत है, उसमें 'भ्रातृ' शब्द का ही प्रभाव है।
३–पञ्चपादी उणादिसूत्रों के व्याख्याता स्वामी दयानन्द सरस्वती इन्हें पाणिनीय मानते हैं । यथा___ क-वह अष्टाध्यायी, धातुपाठ आदिगण ( ? उणादिगण ) शिक्षा और प्रातिपदिकगण यह पांच पुस्तक पाणिनि मुनिकृत......।'
ख-पाणिनि मुनि रचित उणादि गणसूत्र प्रमाण हनिकुषिनी- रमि.....।
१. ऋषि दयानन्द के पत्र और विज्ञापन, भाग १, पृष्ठ ३५, पं २ (त. संस्क० )।
२. ऋषि दयानन्द के पत्र और विज्ञापन, भाग १, पृष्ठ ५४, पं०८ ३० (तृ० संस्क० )