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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
धातुपाठ की जो चन्नवीर कवि की टीका प्रकाश में आई है, उसके सम्पादक ने अपनी भूमिका में लिखा है कि चन्नवीर ने पुरुषसूक्त की भी कन्नड टीका लिखी है । उसके कतिपय पाठों को उद्धत करते हुए पुरुषसूक्त व्याख्या के पृष्ठ १८ पर ब्राह्मये पद के साधुत्व-प्रतिपादन के लिए निर्दिष्ट ब्रहो ममनमणिश्च सूत्र उद्धृत किया है। और अन्त में लिखा है कि यह बात काशकृत्स्न के दशपादी उणादि में कही गई है। __ सम्पादक द्वारा उद्धृत सूत्र का पाठ कुछ भ्रष्ट है। चन्नवीर ने
धातुपाठ की टीका में बृहेऋ रो मनि सूत्र उद्धृत किया है (द्र० - १० पृष्ठ ६७) । सम्भवतः यह पाठ भी मूल सूत्र का पाठ न होकर उसका एकदेश अथवा अर्थानुवाद हो ।
सम्पादक महोदय ने काशकृत्स्न के जिस दशपादी उणादि का उल्लेख किया है, उसका संकेत उन्हें कहां से प्राप्त हुअा,इसका उन्होंने
कुछ भी संकेत नहीं किया। सम्प्रति उपलभ्यमान दशपादी उणादि१५ सूत्र पञ्चपादी सूत्रों से उत्तरकालीन हैं, यह हम आगे लिखेंगे। अतः
यदि काशकृत्स्न का उणादिपाठ दशपादी हो, तब भी वह वर्तमान में उपलम्यमान दशपादी पाठ नहीं है, इतना निश्चित है। __हमने धातुपाठ के प्रकरण में पृष्ठ ३४ पर लिखा है कि प्राचार्य चन्द्र ने धातूपाठ के प्रवचन में काशकृत्स्न के धातूपाठ का अनुकरण किया है । यदि चन्द्रगोमी ने अपने उणादिसूत्रों के प्रवचन में भी काशकृत्स्न उणादिसूत्रों का अनुकरण किया हो, तो चान्द्र उणादिपाउ में तीन पादों का दर्शन होने से यह अनुमान किया जा सकता है कि काशकृत्स्न उणादिपाठ में भी तीन पाद ही रहे होंगे। वर्तमान में
उपलभ्यमान पञ्चपादी उणादिसूत्रों के प्रवचन का मूल आधार कोई २५ प्राचीन त्रिपादी उणादिसूत्र थे, यह हम आगे पञ्चपादी के प्रकरण में लिखेंगे।
काशकृत्स्न के उणादिपाठ के सम्बन्ध में हम केवल काशकृत्स्न धातुपाठ के सम्पादक डा० ए० एन० नरसिंहिया के निर्देश पर हो
आश्रित हैं । इस सम्बन्ध में हमें कहीं अन्यत्र से कोई सूचना प्राप्त ३० नहीं हुई।