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गणपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता
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नामपारायण का साक्षात् निर्देश काशिका के आद्य श्लोक में उपलब्ध होता है, और नामपारायण से संबद्ध पारायणिकों का निर्देश काशिका ८।३।४८ में मिलता है । पदमञ्जरी (२।४।६१) भाग १, पृष्ठ ४८७ पर लिखा है-परिशिष्टा: पारायणे द्रष्टव्याः ।
२४. रत्नमति रत्नमति का गणपाठ सम्बन्धी मत वर्धमान की गणरत्नमहोदधि में मिलता है। यथा
१-रत्नमतिस्तु कालशब्दस्य संज्ञावाचिनो ङी। पृष्ठ ४६ ।
२ - रत्नमतिना तु हरितादयो गणसमाप्ति यावत् व्याख्यातम् । तन्मतानुसारिणा मयाप्येते किल निबद्धाः। पृष्ठ १५२ ।
इन उदाहरणों से रत्नमति का गणपाठ-व्याख्यातृत्व स्पष्ट है ।
रत्नमति के धातुपाठ विषयक कतिपय मत माधवीया धातुवृत्ति प्रादि में उपलब्ध होते हैं । उज्ज्वलदत्त ने भी उणादिवृत्ति १।१५१ में रत्नमति का एक उद्धरण दिया है-पुष्वा जलकणिकेति रत्नमतिः। __रत्नमति का उल्लेख हैमबृहन्न्यास १।४।३६; २।११६६ प्रभृति में भी मिलता है।
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२५. वसुक्र वर्धमान ने महरादिपत्यादि गणस्थ उषर्बुध शब्द का व्याख्यान करते हुए लिखा है
उषर्भुद श्रीवसुक्रः।' पृष्ठ २६ ।
इससे वसुक्र का गणपाठ-व्याख्यातृत्व द्योतित होता है । इसके विषय में इससे अधिक हम कुछ नहीं जानते।
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. १. कलकत्ता मुद्रित संस्करण, पृष्ठ ५५ पर 'रत्नामति' पाठ छपा है। वह अशुद्ध है ।