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गणपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता
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ऐसे वैयाकरणों के नाम तथा कृतियां मिलती हैं, जिनका किसी व्याकरण विशेष से सम्बन्ध हमें ज्ञात नहीं हैं । ऐसे गणप्रवक्ता और व्याख्याताओं का हम नीचे निर्देश करते हैं
२०. कुमारपाल (१३ वीं शती वि० प्रथमचरण )
राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर के संग्रह में चौलुक्य- 2 भूपति कुमारपाल विरचित गणदर्पण नाम का एक हस्तलेख ( फोटो कापी) है | इसकी क्रमसंख्या २६५३ है, इसमें २१ पत्र हैं । प्रारम्भ के १-२ पत्रे नहीं हैं । शेष २६ पत्रों के ३८ फोटो पत्रे हैं ।
इसमें प्रति पृष्ठ १४ पंक्ति और प्रति पंक्ति ४७ अक्षर हैं । फोटो कापी के प्रादि में निम्न पाठ है
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काष्ठादारुणवेशामातापुत्राद्भुतस्वतयः । भृशघोरानाज्ञातायुतपरमाश्चेति काष्ठादिगणः । पत्र ३१ ।
ग्रन्थ के अन्त में
सूत्रनचतुविद्या: कुरुपंचालाधिदेवास्व । अनुसंवत्सरो धेनु .. गाजातशत्रवः | संमोदकशुद्धौ पुष्कर तत्परिमण्डलः । प्रतिभूराजपुरुषौ सर्ववेद इति व्यटि बुद्धिः ।
इति राजपितामहश्री चौलुक्य भूपालकुमारपालदेवेन दंडवोसरिप्रतिहारभोजदेवार्थं विरचिते गणदर्पणे तृतीयाध्यायस्य चतुर्थः पादः समाप्तः । शुभं भवतु । ग्रन्थानं ६०० ।।
२०
श्री शके १३८३ वृषसंवत्सरे पौषवदि १३ भौमे ॥ श्री देवगिरौ उकेशवंशे श्री देवडागोत्रे सा० वीरा पुत्रेण वीनपाले सं० सोना सं चपिसीक्तेन ग्रन्थोऽयं समलेखि । वा० समयतऋगणीनं ॥
१५
इस उद्धरण से स्पष्ट है कि यह गणदर्पण चोलुक्य- भूपाल कुमारपाल विरचित है। इसमें तीन प्रध्याय हैं, और प्रति अध्याय २५ चार पाद हैं ।
गणदर्पण की रचना श्लोकबद्ध है । यह किस व्याकरण से संबंध रखता है, यह अन्वेष्य है ।