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१६४ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास एक टीका लिखी थी । इसका एक हस्तलेख इण्डिया आफिस लायब्ररी लन्दन के सूचीपत्र भाग २ खण्ड १ में निर्दिष्ट है।
२. गोवर्धन अाफैक्ट ने अपने हस्तलेखों के सूचीपत्र में गङ्गाधर के साथ गो५ वर्धन का भी गणरत्नमहोदधि के टीकाकार के रूप में उल्लेख किया है।
३. बालकृष्ण शास्त्री वर्धमान-विरचित गणपाठ के श्लोकों की एक गणरत्न नाम्नी संक्षिप्त व्याख्या बालकृष्ण शास्त्री ने लिखी है। इस में कहीं-कहीं वर्धमान कृत व्याख्या=गणरत्नमहोदधि की आलोचना भी की है। यथा सर्वादि गण में वर्धमान द्वारा पठित अन्योन्य परस्पर इतरेतर शब्दों के विषय में लिखा है-अन्योन्य-परस्परेतरेतराणां पाठोऽप्रामाणिकः ।
१६. क्रमदीश्वर (सं० १३०० वि० से पूर्व)
क्रमदीश्वर प्रोक्त संक्षिप्तसार अपर नाम जौमर व्याकरण से १५ संबद्ध जो गणपाठ है, उसका प्रवचन क्रमदीश्वर ने ही किया, अथवा
संक्षिप्तसार के परिष्कर्ता अथवा व्याख्याता जुमरन्दी ने किया, यह अज्ञात है । इस गणपाठ में प्रधानभूत गणों का ही संकलन है।
व्याख्याता-न्यायपञ्चानन जौमर गणपाठ पर न्यायपञ्चानन नाम के विद्वान ने गणप्रकाश २० नाम्नी एक व्याख्या लिखी है।
__ इस न्यायपञ्चानन ने जौमर व्याकरण पर गोयीचन्द्र विरचित टीका पर टीका लिखी है । इसका वर्णन हमने इसी ग्रन्थ के प्रथम भाग में क्रमदीश्वर-प्रोक्त संक्षिप्तसार (जौमर) व्याकरण के प्रकरण में किया है।
२५ १७. सारस्वत व्याकरणकार (वि० सं० १३०० के लगभग)
सारस्वत सूत्रों के रचयिता नरेन्द्राचार्य (अथवा अनुभूतिस्वरूपा