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गणपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता
8 - भोज - ( श्रीभोज)
१० - रत्नमति
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१३ – वृद्ध वैयाकरण १४ - शकटाङ्गज ( पाल्य कीर्ति)
११ – वसुक्र
१२ वामन
इस ग्रन्थ में उपर्युक्त प्राचार्यों के द्वारा प्रस्तुत विभिन्न पाठभेदों अथवा मतों का तो उल्लेख किया ही गया है, अनेक स्थानों पर उनके गणपाठ में पढ़े जाने के प्रयोजन, गणसूत्रों की व्याख्या, तथा विशिष्ट शब्दों के प्रयोग निदर्शन के लिए स्वविरचित और प्राचीन कवियों के vai को उद्धृत किया है ।
१५ – सुधाकर १६– हेमचन्द्र
१०
वर्धमान ने पाणिनीय गणपाठ के स्वर वैदिक प्रकरणातिरिक्त प्रायः सभी गणों का समावेश अपने ग्रन्थ में किया है, किन्हीं का सर्वथा भिन्न रूप में और किन्हीं का नाम परिवर्तन करके । इसी प्रकार कात्यायन के वार्तिक-गणों को भी इसमें समाविष्ट कर लिया गया है । पाणिनि के कतिपय दीर्घकाय सूत्रों और एक प्रकरण के दो चार सहपठित सूत्रों के आधार पर कतिपय नये गण भी निर्धारित किये हैं । इसी प्रकार कतिपय वार्तिकों के आधार पर भी नये गणों की रचना की है । कहीं-कहीं पाणिनि के अनेक गणों का एक गण में भी समावेश देखा जाता है ।
१५
प्राचार्य चन्द्र, पाल्यकीर्ति और हेमचन्द्र द्वारा निर्धारित गणों को प्राय: उसी रूप में स्वीकार कर लिया है । हां किन्हीं गणों के नाम २० परिवर्तित अवश्य किये गये हैं । वामन और भोज द्वारा निर्धारित गणों को भी इसमें स्थान दिया गया है । प्ररुणदत्त के मतानुसार दिगण के शब्दों की एक विस्तृत सूची उपस्थित की है ।
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इन सब विशेषताओं के कारण वर्धमान का गणरत्नमहोदधि ग्रन्थ अपने विषय का एक उत्कृष्ट ग्रन्थ बन गया हैं । सम्प्रति गणपाठ के शब्दों के अर्थ, पाठभेद और प्रयोग ज्ञान के लिए यही एकमात्र साहाय्य ग्रन्थ है। भट्ट यज्ञेश्वर विरचित गणरत्नावली का भी यही आधार ग्रन्थ है |
गणरत्न महोदधि के व्याख्याकार
१. गङ्गाधर
महामहोपाध्याय गङ्गाधर ने वर्धमान के गणरत्नमहोदधि पर
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