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________________ १६२ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास व्याख्या हेमचन्द्र के गणपाठ पर स्वतन्त्र व्याख्या उपलब्ध नहीं होती। तथापि उसके कतिपय गणों के शब्दों की व्याख्या उसके बहन्न्यास में उपलब्ध होती है। जैन सत्यप्रकाश पत्र वर्ष ७ के दीपोत्सवी अंक ५ पृष्ठ ८४ में सवृत्ति गणपाठ का निर्देश है। परन्तु हमारा विचार है कि यहां 'सवृत्ति' पद का सम्बन्ध 'सूत्र' के साथ होना चाहिये । १५. वर्धमान (सं० ११६०-१२१० वि०) गणकारों में वर्धमान का नाम सब से अधिक महत्त्वपूर्ण है। सम्पूर्ण गणपाठ के वाङमय में वर्धमान के स्वीय गणपाठ की स्वोपज्ञा १० गणरत्नमहोदधि व्याख्या ही एकमात्र ऐसा ग्रन्थ है, जिसके साहाय्य से गणपाठ के सम्बन्ध में हम कुछ जान सकते हैं। वर्धमान ने स्वीय व्याकरण से संबद्ध गणपाठ का श्लोकबद्ध संकलन एवं उसकी विस्तृत व्याख्या लिखी है। वर्धमान ने इस व्या ख्या के अन्त में गणरत्नमहोदधि के रचना-काल का निर्देश इस प्रकार १५ किया है सप्तनवत्यधिकेष्वेकादशसु शतेष्वतीतेषु । वर्षाणां विक्रमतो गणरत्नमहोदधिविहितः ॥ अर्थात् विक्रम से ११९७ वर्षों के व्यतीत होने पर गणरत्नमहोदधि ग्रन्थ लिखा गया। वर्धमान ने अपनी व्याख्या में से प्राचीन सभी वैयाकरणों के गणपाठस्थ तत्तत् शब्द विषयक सभी पाठभेदों और मतों का विस्तार से निर्देश किया है। इसमें एक केचित् अपरे आदि सामान्य निर्देशों के अतिरिक्त जिन वैयाकरणों को नामनिर्देशपूर्वक स्मरण किया है, वे ये हैं१-अभयनन्दी ५-द्रमि (वि)ड़ वैयाकरण २-अरुणदत्त ६-पाणिनि ३-चन्द्रगोमी ७-पारायणिक ४-जिनेन्द्र बुद्धि ८-भद्रेश्वर
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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