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गणपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता
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क-पाणिनि के सायंचिरं (४।३।२३) सूत्रपठित शब्दों के लिए सायाह्नादि (३।११५३) गण की कल्पना की है।
ख-पाणिनि के अनन्तावसथ (५।४।२३) सूत्रपठित शब्दों के लिए भेषजादि (७।२।१६४) गण का निर्धारण किया है।
२-नाम परिवर्तन--कहीं-कहीं पर हेमचन्द्र ने पाल्यकीर्ति आदि ५ पूर्वाचार्यों द्वारा निर्धारित गणनामों में भी परिवर्तन किया है। यथा--
पाणिनि के चतुर्थी तदर्थार्थ० (२।११३६) सूत्र के लिए पाल्यकीर्ति द्वारा निर्धारित अर्थादि (शाक० २।१।३६) गण के स्थान में हेमचन्द्र ने उसका नाम चितादि (३३१७१) रक्खा है।
३–एक गण के दो गण-एक गण के दो विभाग अथवा दो गण बनाने की दिशा में भी हेमचन्द्र ने कुछ नया प्रयास किया है । यथा
क–पाणिनि के पुष्करादि (५।२।१३५) गण को पुष्करादि (७॥ २७०) तथा अब्जादि (७।२।६७) दो गणों में विभक्त किया है ।
ख-पाणिनि के कस्कादि (८।३।४८) गण को एक ही सूत्र में १५ भ्रातुष्पुत्रादि (२।३।१४) तथा कस्कादि (२।३।१४) दो गणों में बांटा है।
४-संगृहीत विगृहीत पाठ-हेमचन्द्र ने कतिपय स्थानों पर समान शब्दों को संगृहीत (=समस्त) तथा विगृहीत (=विभक्त) दोनों रूपों में पढ़ा है । यथा
२० क-उत्करादि (६।२।६१) गण में इडाजिर संग्रहीत रूप में, तथा इडा अजिर विगृहीत रूप में। ___ख-तिकादि-(६।१।१३१) गण में तिककितव संगृहीत रूप में, तथा तिक कितव विगृहीत रूप में।
५-पाठान्तरों का संग्रह-गणपाठ के तत्तत् गणों में पूर्वाचार्य २५ स्वीकृत प्रायः सभी पाठान्तरों का हेमचन्द्र ने अपने गणपाठ में संग्रह कर दिया है । हेमचन्द्र की यह प्रवृत्ति उसके स्वभाव के अनुरूप है। हेमचन्द्राचार्य के प्रायः सभी ग्रन्थों में यह संग्रहात्मक प्रवृत्ति देखी जाती है।