________________
संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
५
१४-हेमचन्द्र सूरि (सं० ११४५-१२२९ वि०) .. प्राचार्य हेमचन्द्र का गणपाठ उसकी स्वोपज्ञ-बृहद्वृत्ति में उपलब्ध होता है।
पाल्यकीर्ति का अनुकरण हेमचन्द्र ने पाल्यकीति के शब्दानुशासन और उसकी अमोघा वत्ति का अत्यधिक अनुकरण किया है। डा० बेल्वेल्कर ने इस सम्बन्ध में लिखा है___ 'विशेषताः शाकटायन के शब्दानुशासन तथा अमोघा वृत्ति के
सन्बन्ध में उसका (=हेमचन्द्र का) आश्रित होना इतना निकट का १० है कि वह सर्वथा अन्धानुकरण की स्थिति तक जा पहुंचता है।'
हमारा मन्तव्य-निःसन्देह आचार्य हेमचन्द्र ने अपने पूर्ववर्ती पाल्कीति का अत्यधिक अनुकरण किया है, परन्तु उसके सम्बन्ध में हम डा० बेल्वेकर की सम्मति से सहमत नहीं हैं। प्राचार्य हेमचन्द्र ने यद्यपि अपने सभी ग्रंथों के तत्तद् विषय के प्राचीन ग्रन्थकारों तथा उनके ग्रन्थों का अनुकरण किया है, तथापि उनमें प्राचार्य के अपने मौलिक अंश भी हैं। अन्धानुकरण का दोष तभी दिया जा सकता है, जबकि किसी ग्रन्थकार के ग्रन्थ में उसका मौलिक अंश किञ्चिन्मात्र भी न हो। इतना ही नहीं, वाङ्मय के क्षेत्र में ऐसा कौन-सा
लेखक है, जो अपने से पूर्व लेखकों की सामग्री का उपयोग न करके २० सब कुछ स्वमनीषा से उद्भासित वस्तु अथवा तत्त्व का ही निर्देश करता है।
जहां तक हेमचन्द्र के गणपाठ का सम्बन्ध है, वह प्रायः पाल्यकीर्ति के गणपाठ का अनुकरण करता है, पुनरपि उसमें कतिपय स्थानों में स्वोपज्ञ अंश भी है। यथा
१-नए गणों का निर्धारण--प्राचीन वैयाकरणों की शब्दानुशासन के लाघव के लिए नए-नए गणों की उद्भावना पद्धति पर चलते हुए हेमचन्द्र ने कतिपय नये गणों की उद्भावना की है। यथा
१. सिस्टम्स् आफ संस्कृत ग्रामर, पृष्ठ ७६ ।