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________________ गणपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता १८६ व्याख्याकार 1 भोजी सरस्वतीकण्ठाभरण के व्याख्याता दण्डनाथ ने शब्दानुशासन को व्याख्या में गणसूत्रों की व्याख्या भी की है । परन्तु गणपाठ के शब्दों की जैसी व्याख्या होनी चाहिए, वैसी व्याख्या उसकी टीका में स्वरादि चादि प्रादि आदि कतिपय गणों की ही उपलब्ध होती है । १३ - भद्रेश्वर सूरि (सं० १२०० वि० से पूर्व ) भद्रेश्वर सूरिविरचित दीपक व्याकरण का वर्णन हम इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में कर चुके हैं। उसी प्रकरण में हमने वर्धमान के गणरत्नमहोदधि का एक उद्धरण दिया है। जिससे विदित होता है कि १० भद्रेश्वर सूरि ने स्व- शब्दानुशासन से सम्बद्ध किसी गणपाठ का भी प्रवचन किया था। वह प्रवतरण इस प्रकार है भद्रेश्वराचार्यस्तु- fia स्वा दुर्भगा कान्ता रक्षान्ता निचिता समा । सचिवा चपला भक्तिर्बात्येति स्वादयो दश ।। इति स्वाद वेत्यनेन विकल्पेन पुंवद्भावं मन्यते । गणरत्नमहोदधि, पृष्ठ 8८ । १५ इन उद्धरण में भद्रेश्वर सूरि प्रोक्त गणपाठ के स्वादि गण का उल्लेख है । यदि उक्त उद्धरण में निर्दिष्ट श्लोक भद्रेश्वर सूरि का ही हो ( जिसकी अधिक सम्भावना है), तो इससे यह भी जाना जाता २० है कि उक्त गणपाठ श्लोकबद्ध था । नामपरिवर्तन - भद्रेश्वर सूरि ने भी पूर्वाचार्यों को पद्धति पर चलते हुए पाणिनिनिर्दिष्ट कतिपय गणनामों का परिवर्तन किया था । उक्त उद्धरण में निर्दिष्ट स्वादि नाम पाणिनि- प्रोक्त प्रियादि ( ६ | ३ | ३३) का है। २५ इससे अधिक हम इस प्राचार्य के गणपाठ के विषय में कुछ नहीं जानते ।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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