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________________ १८० संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास मनोरमादि के पढ़ने से पचास वर्षों में भी नहीं हो सकता। क्योंकि महाशय महर्षि लोगों ने सहजता से महान विषय अपने ग्रन्थों में प्रकाशित किया है, वैसा इन क्षद्राशय मनुष्यों के कल्पित ग्रन्थों में क्योंकर हो सकता है ? महर्षि लोगों का आशय, जहां तक हो सके वहां तक सुगम और जिसके ग्रहण में थोड़ा समय लगे, इस प्रकार का होता है। और क्षद्राशय लोगों की मनसा ऐसी होती है कि जहां तक बने वहाँ तक कठिन रचना करनी, जिसको बड़े परिश्रम से पढके अल्प लाभ उठा सके, जैसे पहाड़ का खोदना, कौड़ी का लाभ होना और आर्ष ग्रन्थों का पढ़ना ऐसा है कि एक गोता लगाना, बहुमूल्य मोतियों का पाना।' सत्यार्थप्रकाश समु० ३, पठनपाठनविधि। . सत्यार्थप्रकाश प्रथम संस्करण के चौदहवें समुल्लास' के अन्त में स्वामी दयानन्द सरस्वती ने जो एक विज्ञापन लिखा था, उसमें अनार्ष क्षद्राशय लोगों के लिखे ग्रन्थों के विषय में यहां तक लिखा १५ 'जिन ग्रन्थों को दूर छोड़ने को कहा कि इनको न पढ़ें, न पढ़ावें, न इनको देखें। क्योंकि इनको देखने से वा सुनने से मनुष्य की बुद्धि बिगड़ जाती है। इससे इन ग्रन्थों को संसार में रहने भी न दें, तो बहुत उपकार होय'। १. स्वामी दयानन्द सरस्वती ने सं० १९३२ (सन् १८७५) में सत्यार्थ२. प्रकाश का जो प्रथम संस्करण छपवाया था, उसके लिए लिखे तो चौदह समु ल्लास ही थे, परन्तु किन्हीं कारणों से अन्त के दो समुल्लास उस समय न छा सके थे । इस आद्य सत्यार्थप्रकाश की हस्तलिखित प्रति सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ के लिखवाने और छपवाने वाले राजा जयकृष्णदास के घर मुरादाबाद में अद्ययावत् सुरक्षित है । कुछ वर्ष हुऐ श्रीमती परोपकारिणी सभा मजमेर ने इस इस्तलेख २५ को महान् यत्न से प्राप्त करके इसकी फोटो कापी करा कर उसने अपने पास भी सुरक्षित करली है। द्र०-ऋषि दयानन्द सरस्वती के ग्रन्थों का इतिहास, पृष्ठ २२-२५। २. सत्यार्थप्रकाश के तृतीय समुल्लासान्तर्गत पठनपाठन-विधि में। ३. ऋषि दयानन्द के पत्र और विज्ञापन भाग १, पृष्ठ ३७ (तृ० सं०)। ३० उक्त विज्ञापन स० प्र० की हस्तलिखित प्रति के पृष्ठ ४८५-४६५ तक उपलब्ध होता है।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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