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गणपाठ के प्रवक्ता और व्याख्यात
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विशेष-कातन्त्र के सर्वादि गण में 'किम्' शब्द का पाठ 'एक द्वि' से पूर्व किया है। अतः अद्वयादेः सर्वनाम्नः (३।२।२४) सूत्र में पाणिनि के समान 'किम्' के पाठ की आवश्यकता नहीं रही।'
कृदन्त भाग में१-पचादि (४।२।४८) ५-भिदादि (४१५८२) ५ २-नन्द्यादि (४।२।४६) ६-भीमादि (४।६।५१) ३-ग्रहादि (४।२।५०) । ७-न्यङ क्वादि (४।६।५७) ४-गम्यादि (४।४।६८) छन्दःप्रक्रिया में-- १-केवलादि केवलमामक आदि सूत्र के लिए १० २-कवादि कद्रुकमण्डल्वोश्छन्दसि सूत्र के लिए ३-छन्दोगादि छन्दोगौक्थिक आदि सूत्र के लिए ४-सोमादि सोमाश्वेन्द्रिय प्रादि सूत्र के लिए
इन उपरि निर्दिष्ट गणों में से मूल कातन्त्र अन्तर्गतगणों को कातन्त्र के संक्षेपकार शर्ववर्मा ने व्यवस्थित किया होगा। क्योंकि १५ विना गणपाठ की व्यवस्था के 'आदि' पद मात्र के निर्देश से सूत्रों में सर्वादि गर्गादि का निर्देश नहीं हो सकता। इसी प्रकार कृत्प्रकरण के गणों का कृत सूत्रकार कात्यायन वररुचि ने तथा छन्दःप्रक्रियान्तर्गत गणों का छन्दः परिशिष्टकार ने व्यवस्थित किया होगा।
कातन्त्र व्याकरण के सम्बन्ध में इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में १० विस्तार से लिख चुके हैं।
कातन्त्र व्याकरण के गणपाठ पर किसी वैयाकरण ने कोई व्याख्या लिखी अथवा नहीं, इस विषय में हमें कुछ भी ज्ञान नहीं है।
१. द्रष्टव्य–'किंसर्वनामबहुभ्योऽद्वयादिभ्यः' (५॥३॥२) पाणिनीय सूत्र पर न्यासकार ने लिखा है- 'सर्वनामत्वं किम: सर्वादिषु पाठात् । किमो ग्रहण- २५ मित्यादि । किंशब्दोऽयं द्वयादिषु पठ्यते इति, तस्य अद्वयादिभ्य इति पर्युदासः क्रियते । तस्मात् सर्वनाम्नोऽपि स्वशब्देनोपादानम् । यद्येवं द्विशब्दात पूर्व किंशब्दः पठितव्यः । एवं हि तस्य पृथग्ग्रहणं कर्तव्यमेव भवति। सत्यसेतव............।' न्यास भाग २, पृष्ठ १०६ ।