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________________ १७४ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास ५. गणपाठ श्लोक यह ग्रन्थ पाणिनीय गणपाठ विषयक है। इसका पञ्चमाध्याय पर्यन्त एक अपूर्ण हस्तलेख भण्डारकर प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान में विद्यमान है। द्र०-सूचीपत्र सन् १९३८, संख्या २५६/७८०/१८६५१६०२ । ग्रन्थकार का नाम अज्ञात है। पाणिनीय गणपाठ से संबद्ध जितने ग्रन्थकारों का हमें ज्ञान है, उनका वर्णन करके पाणिनि से औत्तरकालिक गणपाठप्रवक्ताओं का वर्णन करते हैं। १० ६-कातन्त्रकार (सं० २००० वि० पूर्व) कातन्त्र व्याकरण के प्रवक्ता ने स्वतन्त्र संबद्ध गणपाठ का भी प्रवचन किया था। कातन्त्र गणपाठ के जो हस्तलेख मिलते हैं, उनमें कातन्त्र व्याकरण के प्रायः सभी गणों का उल्लेख है। कातन्त्र व्याकरण के तीन भाग हैं१-आख्यातान्त मूल ग्रन्थकार द्वारा प्रोक्त २-कृदन्त भाग वररुचि कात्यायन कृत ३-छन्दःप्रक्रिया परिशिष्टकार इन तीनों गणों की सूची इस प्रकारपाख्यातान्त भाग में१-सर्वादि (२।१।२५) १२–नदादि (२।४।५०) २–पूर्वादि (२।१।२८) १३--पूरणादि (२।५।१८) ३--स्वस्रादि (२।१।६९) १४- कुञादि (२।६।३) ४--अन्यादि (२।१।८) १५--अत्र्यादि (२०६।४) ५-त्यदादि (२।३।२९) १६-बह्वादि (२०६६) ६-युजादि (२॥३॥४६) १७-गवादि (२।६।११) ७-दृगादि (२।३।४८) १८- क्रयादि (२।६।२४) ८-मुहादि (२।३।४६) १९--सद्यादि (२०६।३७) २०-राजादि (२।६।४१) १०--यस्कादि २१--धेन्वनडुहादि (२०६४१-६५) ११-विदादि 8--गर्गादि
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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