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________________ गणपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता १७१ में अपने पिता का नाम चिमणा जी' और गुरु का नाम महाशंकर लिखा है। यह दाक्षिणात्य तैत्तिरीय शाखाध्येता ब्राह्मण था। यज्ञेश्वर भट्ट ने प्रायविद्यासुधाकर ग्रन्थ को रचना शकाब्द १७८८ (= विक्रमाब्द १९२३) में की है। गणरत्नावली का प्रारम्भ विक्रम सं० १९३० में किया था । यह उसने स्वयं लिखा है- ५ संवत् श्रीविक्रमादित्यकालात् खत्र्यङ्कभू (१९३०) मिते । प्रतीते गणरत्ननामावलीयं विनिर्मिता ॥ पृष्ठ ३६ ( हमारा हस्तलेख ) । गणरत्नावली की समाप्ति शकान्द १७९६ (=वि० सं० १९३०) आषाढ़ मास में हुई। इसका निर्देश ग्रन्थकार ने स्वयं किया है- १० भट्टयज्ञेश्वरकृतो ग्रन्थोऽयं पूर्णतां गतः । शाके रसाङ्कमुनिभू (१७९६) मिते तपोऽभिधे ।। ग्रन्थ के अन्त में। यज्ञेश्वर भट्ट की गणरत्नावली का मुख्य आधार गणरत्नमहोदधि है, यह उसने स्वयं मुक्तकण्ठ से स्वीकार किया है । वह ग्रन्थ के अन्त १५ में लिखता है अस्य ग्रन्थस्य निर्माणे गणरत्नमहोदधिः ।। अभवन् मुख्यः सहायोऽन्ये ग्रन्था इत्युपकारकाः ।। - पाणिनीय सम्प्रदाय में गणपाठ पर एकमात्र 'गणरत्नावली' ग्रन्थ ही उपलब्ध होता है । यह ग्रन्थ बहुत पूर्व शिलाक्षरों पर छप चुका २० है, सम्प्रति अति दुर्लभ है । हमने इसकी उपयोगिता को देख के आज से २८ वर्ष पूर्व छात्रोवस्था में इस ग्रन्थ को अपने लिये प्रतिलिपि की थी, और प्रकाशनार्थ कुछ भाग की प्रेसकापी भी तैयार की थी। १. चिमणाजीतनूजेन दाक्षिणात्यद्विजन्मा । प्रार्यविद्यासुधाकर के अन्त में। २. महाशंकरशर्मगं गुरु नत्वा विदांवरम् । आर्यविद्यासुधाकर के प्रारम्भ २५ में, श्लोक ७। ३. द्र०—ार्यविद्यासुधाकर के अन्त में । - ४. यह संकेत सन् १९६१ का है, जब 'सं० व्या० शास्त्र का इतिहास' का द्वितीय भाग प्रथम वार छपा था। हमारी गणरत्नावली की प्रतिलिपि के अन्त में प्रतिलिपि की समाप्ति का काल ३-३-१९३३ लिखा है। यह प्रतिलिपि -tic
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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