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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
गणपाठ विवृति प्रकाशवर्ष का छोटा सा छन्दोबद्ध संग्रह मात्र है। 'विवति' की अन्वर्थता के लिये एक दो शब्द ही व्याख्या के रूप में कहीं-कहीं मिलते हैं।"
__ मेरे मित्र डा० रामसुरेश जी त्रिपाठी का कुछ वर्ष पूर्व स्वर्गवास ५ हो गया है । इसलिये यह ज्ञात नहीं हो सका कि त्रिपाठी जी के द्वारा स्वसम्पादित संस्करण प्रकाशित हुआ है वा नहीं।
श्री डा० कपिलदेव शास्त्री के ता. २१-२-८४ के पत्र से ज्ञात हुआ कि पं० पिनाकपाणि ने गणपाठ विवृति का कार्य छोड़ दिया।
इस ग्रन्थ के हस्तलेख शारदा लिपि में होने से सम्भव है लेखक १. प्रकाशवर्ष कश्मीर का रहनेवाला हो। मल्लिनाथ ने प्रकाशवर्ष को उद्धृत किया है। मल्लिनाथ का काल सं० १२६४ से पूर्व है।'
. ५-पुरुषोत्तमदेव (वि० सं०१२००) भाषावृत्तिकार पुरुषोत्तम देव ने कोई ‘गणवृत्ति' ग्रन्थ लिखा था, ऐसी सूचना भाषावृत्ति के सम्पादक श्रोशचन्द्र चक्रवर्ती ने भूमिका के १५ पृष्ठ १ पर दी है।
६-नारायण न्यायपञ्चानन नारायण न्यायपञ्चानन ने गणपाठ पर 'गणप्रकाश' नाम की एक व्याख्या लिखी थी। इसके एक कोश का संकेत एस. एम. अयाचित ने
अपने 'गणणठ ए क्रिटिकल स्टडि' नामक निबन्ध में दिया है। इस २० हस्तलेख में अ० ४,५ गणों की ही व्याख्या है। उनके मतानुसार यह ग्रन्थ ईसा की १८ वीं शती के पूर्वाध का है।
७-यज्ञेश्वर भट्ट यज्ञेश्वर भट्ट नाम के आधुनिक वैयाकरण ने पाणिनीय गणपाठ पर गणरत्नावली नाम को व्याख्या लिखी है । इसमें ग्रन्थकार ने २५ गणरत्नमहोदधि का अनुकरण करते हुए पहले गणशब्दों को श्लोकबद्ध किया है, तत्पश्चात् उनकी व्याख्या की है।
परिचय तथा काल-यज्ञेश्वर भट्ट ने प्रार्यविद्यासुधाकर ग्रन्थ
१. यथा सर्वादिगण में 'त्व' एवं 'त्वत्' के भेद को दर्शाने के लिये उसमें ३० 'स्वरार्थम' पाठ मिलता है। २. द्र०-आगे मल्लिनाथ कृत न्यासोद्योत ।