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गणपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता
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१-कृतमिति निवारणनिषेषयोः, इति गणव्याख्याने।
किरात० २॥१७॥ २-सहसेत्याकस्मिकाविमर्शयोः, इति गणव्याख्याने ।
किरात० २॥३०॥ ३-अस्मीत्यस्मदर्थानुवादेऽहमर्थेऽपि, इति गणव्याख्याने। ५
किरात० ३।६।। ४-प्रत्युतेत्युक्तवैपरोत्ये, इति गण व्याख्यानात् ।
शिशुपाल० १॥३९॥ इसी प्रकार रघुवंश में भी तीन स्थानों पर 'गणव्याख्यान' का उल्लेख मिलता है। यह गणव्याख्यान वधमानकृत गणरत्नमहोदधि १० ही है, अन्य नहीं । ये चारों उद्धरण क्रमशः गणरत्नमहोदधि पृष्ठ ६, १८, १७ तथा ६ पर अक्षरशः उपलब्ध होते हैं ।
४-गणपाठ-विवृत्ति (वि० सं० १२००) इस ग्रन्थ का एक हस्तलेख कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में विद्यमान है । यह शारदा लिपि में लिखित है।
इस ग्रन्थ के सम्बन्ध में प्रथम सूचना श्री पं० विरजानन्द देवकरणि (कन्या गुरुकुल नरेला-दिल्ली) ने अपने २६-६-१९७५ के पत्र में दी थी। इसी के आधार पर इस विषय में अधिक परिचय पाने के लिये मैंने अपने मित्र श्री प्रा. कपिलदेव जी शास्त्री (कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय) को पत्र लिखा था। उसके उत्तर में शास्त्री जी ने २० अपने ता० ८-७-१९७५ के पत्र में गणपाठ-विवृत्ति के विषय में निम्न सूचना दी थी
'गणपाठ विवृति नामक एक हस्तलेख यहां है। डा० रामसुरेश त्रिपाठी (अध्यक्ष-संस्कृत विभाग, मुस्लिम यूनिवर्सिटी, अलीगढ़) ने देवनागरी तथा शारदा दोनों लिपियों में इस ग्रन्थ के हस्तलेख प्राप्त २५ कर लिये हैं। वे इसका आलोचनात्मक संस्करण निकाल रहे हैंऐसी सूचना उन्होंने दी थी। यहां पं० स्थाणुदत्त जी के सुपुत्र श्री पिनाकपाणि शर्मा ने पीएच. डी. के लिये इस 'गणपाठ विवृति तथा गणरत्नमहोदधि के तुलनात्मक अध्ययन' का प्रारम्भ मेरे निर्देश में किया है...........।
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