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________________ गणपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता १६७ (१।४।५७), स्वरादि (१।१।३७) तथा प्रादि (१।४।५८) गणों के साथ है। निपाताव्ययोपसर्ग की व्याख्या-क्षीरस्वामी के उक्त वृत्ति ग्रन्थ पर तिलक नाम के किसी विद्वान ने व्याख्या लिखी है। इस सव्याख्या निपातोपसर्गवृत्ति का एक हस्तलेख अडियार (मद्रास) के हस्तलेख ५ संग्रह में सुरक्षित है। द्र०-व्याकरणविभागीय सूचीपत्र, पुस्तक संख्या ४८७ । इसके अन्त में निम्न पाठ है_ 'इति भट्टक्षीरस्वाम्युत्प्रेक्षितनिपाताव्ययोपसर्गीये तिलककृता वृत्तिः संपूर्णति । भद्रं पश्येम प्रचरेम भद्रम् प्रोमिति शिवम् । . विशेष देखो पूर्व भाग २, पृष्ठ ६९-१०० । गणवृत्ति क्षीरस्वामी ने एक गणवृत्ति ग्रन्थ लिखा था। इसमें गणपाठ की व्याख्या रही होगी, यह इसके नाम से ही स्पष्ट है। क्षीरस्वामी की गणवृत्ति इस समय अनुपलब्ध है। इसके उद्धरण भी हमें देखने को नहीं मिले। __गणवृत्ति नाम से उद्धृत कतिपय उद्धरण सायण ने माधवीया धातुवृत्ति के नाम-धातु-प्रकरण में गणवृत्ति के निम्न उद्धरण लिखे हैंक-अत्र गणवृत्तौ लोहितश्यामदुःखानि हर्षगर्वसुखानि च । मूर्छा निद्रा कृपा धूमा करुणा नित्यवर्मणि ॥ पृष्ठ ४१७ ।। ख-रेहःशब्दो रहसि निर्घ णत्वे भिक्षाभिलाषस्य च निवृत्ती वर्तत इति गणवृत्ती । पृष्ठ ४१६ ॥ ग-गणवृत्तौ तु बृहच्छन्दो न दृश्यते भद्रशब्दस्तु पठ्यते। तथा च कन्धरशब्दश्च त्वचोऽभ्यन्तरे स्थूलत्वाभा असंयुक्ता स्नायुः कन्धरा २५ तद्वान् कन्धरः। मत्वर्थे अर्शनादिभ्योऽच् इति व्याख्यात च। पृष्ठ ४१६॥ घ-अन्धरो मूोऽपुष्करश्चेति गणवृत्तौ । पृष्ठ ४१६॥ हु-रेहस रोष इति गणवृत्तौ । पृष्ठ ४१७॥ इनमें से प्रथम उद्धरण नामनिर्देश के विना सिद्धान्तकौमुदी ३०
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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