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१६६ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
हरदत्त ने तौल्वल्यादि गण (२।४।६१) के कतिपय शब्दों का निर्वचन करके लिखा है
'परिशिष्टाः पारायणे द्रष्टव्याः' । २।४।६२, भाग १, पृष्ठ ४८७
यह नामपारायण ग्रन्थ पाणिनीय गणपाठ का व्याख्यान ग्रन्थ ५ रहा होगा। परन्तु नामपारायण के दो उद्धरण ऐसे भी उपलब्ध होते
हैं, जिन से अाशंका होती है कि यह नामपारायण किसी अन्य तन्त्र से संबद्ध रहा हो । वे उद्धरण इस प्रकार हैं
१-काशिकाकार ने ८।३।४८ में लिखा है
'सपिष्कुण्डिका, धनुष्कपालम्, बहिष्पूलम्, यजुष्पात्रम् इत्येषां पाठ १० उत्तरपदस्थस्यापि षत्वं यथा स्यादिति पारायणिका आहुः'।
___ यतः यह पाठ कस्कादि गण से सम्बन्ध रखता है, अतः यहां पारायणिकाः पद से नामपारायण के अध्येता इष्ट हैं। ___ काशिकाकार ने पारायणिकों के उक्त मत का भाष्य तथा वत्ति
ग्रन्थ से विरुद्ध होने के कारण प्रत्याख्यान कर दिया है। १५ २–निदाघ शब्द की व्युत्पत्ति दर्शाते हुए सायण ने लिखा है
'निदध्यतेऽनेनेति कृत्वा निदाघशब्दः साधुरिति पारायणिकाः इति सुधाकरस्तदपाणिनीयम् ।' धातुवृत्ति पृष्ठ ३२२ ।
यहां भी सुधाकर के नाम से उद्धृत नामपारायणिकों के मत को अपाणिनीय कहा है। २० ३-क्षीरस्वामी (वि० सं० १११५-११६५)
क्षीरस्वामी ने क्षीरतरङ्गिणी और अमरकोश की व्याख्या के आरम्भ में समानरूप से एक श्लोक पढ़ा है । उसका चतुर्थ चरण है'न्याय्ये वर्त्मनि वर्तनाय भवतां षड् वृत्तयः कल्पिताः॥
इस पद्यांश में क्षीरस्वामो ने ६ वृत्तियां लिखने का संकेत किया २५ है । इन छः वृत्तियों में गणपाठ से सम्बन्ध रखने वाली दो वृत्तियां हैं । एक निपाताव्ययोपसर्गवृत्ति, दूसरी गणवृत्ति।
निपाताव्ययोपसर्गवृत्ति क्षीरस्वामी ने इस वृत्ति में निपात, अव्यय और उपसर्गों के अर्थ मादि पर विचार किया है। इनका सम्बन्ध गणपाठ के चादि