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________________ १५० संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास के जो सूत्र, संज्ञा और प्रत्याहार यदि उपलब्ध हुए हैं, वे भी पाणिनीय सूत्र, संज्ञा और प्रत्याहारों से प्रायः समानता रखते हैं ।' गणपाठ आचार्य पिशलि ने स्वशब्दानुशासन से संबद्ध गणपाठ का ५ पृथक् प्रवचन किया था । प्रापिशलि के सर्वादिगण के पाठक्रम का निर्देश करनेवाला आचार्य भर्तृहरि का एक वचन इस प्रकार है 'इह त्यदादीन्या पिशलैः किमादीन्यस्मत्पर्यन्तानि ततः पूर्वापराधरेति" .."। महाभाष्यदीपिका, हमारा हस्तलेख, पृष्ठ २८७, पूना संस्क० पृष्ठ २१६ । अर्थात् आपिशलि के गणपाठ में त्यदादि - किम् से लेकर अस्मत् पर्यन्त थे, तत्पश्चात् पूर्वापराधर आदि गणसूत्र पठित थे । १० भर्तृहरि के उक्त वचन की पुष्टि प्रदीपकार कैयट के निम्न वचन से भी होती है 'त्यदादीनि पठित्वा गणे कैश्चित् पूर्वादीनि पठितानि' ।' १५ इन उद्धरणों से पिशलि के गणपाठ को सत्ता स्पष्ट प्रमाणित होती है । पाणिनि से पूर्ववर्ती अन्य गणकार पाणिनि से पूर्ववर्ती अन्य वैयाकरणों ने भी गणपाठ का प्रवचन किया होगा, इसमें कोई सन्देह नहीं । परन्तु उनके स्पष्ट निर्देशक २० प्रमाण हमें उपलब्ध नहीं हुए, इसलिए हमने अन्यों का उल्लेख नहीं किया । प्रातिशाख्य प्रवक्ताओं में भी कुछ एक ने गणपाठशैली का श्राश्रय लिया था, यह उनके विभिन्न सूत्रों से स्पष्ट है । इस विषय के विस्तार के लिए प्राध्यापक कपिलदेव साहित्याचार्य एम० ए० पीएच० डी का "संस्कृत व्याकरण में गणपाठ की परम्परा और २५ प्राचार्य पाणिनि" निबन्ध का द्वितीय अध्याय देखना चाहिए । पाणिनीय गणपाठ में कतिपय ऐसे प्रश हैं, जिनसे प्रतीत होता १. द्र० सं० व्या० शास्त्र का इतिहास भाग १, पृष्ठ १५१-१५६ । २. महा० प्रदीप १|१|३३|| ३. यह ग्रन्थ रामलाल कपूर ट्रस्ट, बहालगढ़ (सोनीपत) से प्राप्य है ।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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