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गणपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता १४६ चन्नवीर कविकृत धातुपाठ की कन्नड टीका में काशकृत्स्न के जो १३५ सूत्र उपलब्ध हुए हैं, उन में एक सूत्र है
क्षिप्नादीनां न नो णः । पृष्ठ २४७ ।' अर्थात्-क्षिप्ना प्रभृति शब्दों में न के स्थान में ण नहीं होता। यथा क्षिप्नाति।
इस सूत्र की पाणिनि के क्षुम्नादिषु च (अष्टा० ८।४।३९) सूत्र से तुलना करने पर स्पष्ट है कि काशकृत्स्न ने कोई क्षिप्नादि गण अवश्य पढ़ा था।
४. आपिशलि (सं० २९०० वि० पू०) आपिशलि के व्याकरण और उसके काल आदि के विषय में इस १० ग्रन्थ के प्रथम भाग पृष्ठ १४६-१५८ (च० सं०) तक विस्तार से लिख चुके हैं। पाणिनि द्वारा स्मृत आचार्यों में प्रापिशलि ही एक ऐसा प्राचार्य है, जिसके विषय में हम अन्यों की अपेक्षा अधिक जानते हैं । पदमञ्जरीकार हरदत्त के मतानुसार पाणिनीय तन्त्र की पृष्ठभूमि प्रधानरूप से आपिशल व्याकरण ही है। हरदत्त के लेख की १५ पुष्टि प्रापिशलि और पाणिनि के उपलब्ध शिक्षासूत्रों की तुलना से भी होती है। दोनों प्राचार्यों के शिक्षासूत्रों में कुछ साधारण सा वैशिष्टय है, अन्यथा दोनों में समानता है। आपिशलि के व्याकरण
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१. इन सूत्रों की विशद व्याख्या के लिए देखिए 'काशकृत्स्न व्याकरण और उसके उपलब्ध सूत्र' नामक निबन्ध।
२. उक्त निबन्ध, क्रमिक सूत्र संख्या ११३ । . ३. कथं पुनरिदमाचार्येण पाणिनिनाऽवगतमेते साधव इति ? प्रापिशलेन पूर्वव्याकरणोन............"। पदमञ्जरी, 'अथ शब्दा०' भाग १, पृष्ठ ६ । इसी प्रकार पृष्ठ ७ पर भी लेख है।
४. पाणिनीय शिक्षासूत्रों में अष्टाध्यायी के समान अपिशलि का मत भी २५ उद्धृत है । द्र० पृष्ठ संख्या १८, सूत्र ८।२५ दोनों शिक्षासूत्रों का विस्तृत विवेचनायुक्त आदर्श संस्करण हम प्रकाशित कर चुके हैं।