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गणपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता
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अज्ञात है । प्राचीन वैयाकरणों के उपलब्ध सूत्रों और उद्धृत मतों से इस विषय में जो प्रकाश पड़ता है, तदनुसार पाणिनि से पूर्ववर्ती निम्न प्राचार्यों ने अपने-अपने तन्त्रों में गणपाठ का प्रवचन किया था
१. भागुरि (४००० वि० पूर्व) प्राचार्य भागुरि के व्याकरणशास्त्र और उसके काल आदि के ५ विषय में हम इस ग्रन्य के प्रथम भाग, पृष्ठ १०४-११० (च० सं०) तक विस्तार से लिख चुके हैं। वहीं पर पृष्ठ १०६-१०७ पर भागुरिव्याकरण के उपलब्ध कतिपय वचन तथा मत लिखे हैं। उनमें निम्न वचन विशेष द्रष्टव्य हैं
मुण्डादेस्तत्करोत्यर्थे, गृह्णात्यर्थे कृतादितः । वक्तीत्यर्थे च सत्यादेर्, अङ्गादेस्तन्निरस्यति ।।' तस्ताद्विघाते, संछादेर्वस्त्रात पृच्छादितस्तथा ।
सेनातश्चाभियाने णिः, श्लोकादेरप्युपस्तुतौ ॥' इन उद्धरणों में मुण्डादि, कृतादि, सत्यादि, पुच्छादि और श्लोकादि पांच गणों का निर्देश है । विना गणपाठ के पृथक् प्रवचन १५ के इस प्रकार के आदि पद घटित निर्देशों का कोई अर्थ नहीं होता। इससे स्पष्ट है कि भागुरि ने गणपाठ का पृथक् प्रवचन अवश्य किया था। ___एक अन्य प्रमाण-भाषावृत्तिकार पुरुषोत्तम देव ने ४।१।१० की व्याख्या करते हुए लिखा है नप्तेति भागुरिः । अर्थात् भागुरि २० के मत में नप्तृ शब्द भी स्वस्त्रादि गण में पठित था, इसलिए उससे स्त्रीलिंग में ङोप न होकर नप्ता प्रयोग ही होता था। ___ उक्त पाठ में अशुद्धि-पुरुषोत्तम देव द्वारा उद्धृत भागुरि मतनिदर्शक पाठ में हमें कुछ अशुद्धि प्रतीत होती है। कातन्त्र परिशिष्ट की गोपीनाथ कृत टीका पृष्ठ ३८६ (गुरुनाथ विद्यापति का संस्क०) र में नप्तेति भागवृत्ति, नप्त्रीति भागुरि: पाठ मिलता है। 'नप्ता' में डीप नहीं होता, यह मत भागवृत्तिकार के नाम से अन्य ग्रन्थों में भी उद्धृत है । यथा--
१. जगदीश तर्कालंकार कृत शब्दशक्तिप्रकाशिका, पृष्ठ ४४४ (काशी सं०)। २. वही, पृ० ४४५। ३. वही, पृ० ४४६ । ३०