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तेईसवां अध्याय गणपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता
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गणपाठ का स्थान-पञ्चाङ्गो अथवा पञ्चग्रन्थी व्याकरण' में गणपाठ का सूत्रपाठ और धातुपाठ के अनन्तर तृतीय स्थान है। जब व्याकरण अथवा शब्दानुशासन का अर्थ केवल सूत्रपाठ तक सीमित समझा जाता है. उस अवस्था में सूत्रपाठ के अतिरिक्त चारों ग्रन्थों को खिल अथवा परिशिष्ट का रूप दिया जाता है । इस दृष्टि से गणपाठ का खिलपाठों में द्वितीय स्थान है।
. गण शब्द का अर्थ-ण शब्द गण संख्याने (क्षीरत०) धातु से १० निष्पन्न माना जाता है । तदनुसार गण शब्द का मूल अर्थ है-जिनकी
गिनती की जाए। ___ गण और समूह में भेद-यद्यपि सामान्यतया गण-समूह-समुदाय समानार्थक शब्द हैं, तथापि गण और समूह अथवा समुदाय में मौलिक
भेद है । गण उस समूह अथवा समुदाय को कहते हैं, जहां पौर्वापर्य १५ का कोई विशिष्ट क्रम अभिप्रेत होता है। समूह अथवा समुदाय में क्रम की अपेक्षा नहीं होती। ...
गणपाठ शब्द का अर्थ-गणों का क्रमविशेष से पढ़े गए शब्दसमूहों का जिस ग्रन्थ में पाठ (=संकलन) होता है उसे 'गणपाठ' कहते हैं। इस सामान्य अर्थ के अनुसार धातुपाठ को भी गणपाठ कहा जा सकता है. क्योंकि उसमें भो क्रमविशेष से पवित- १० धातुगणों का संकलन है । इसी दृष्टि से धातुपाठ के लिए कहीं-कहीं गणपाठ शब्द का प्रयोग भो उपलब्ध होता है । परन्तु वैयाकरण वाङ्मय में गणपाठ
१. हे चन्द्राचार्यः श्रीसिद्धहेमाभिवानाभिवं पञ्चाङ्गमपि व्याकरण ...। प्रबन्धचिन्तामणि, पृष्ठ ४६० । बुद्धिसागर प्रोक्त व्याकरण का एक नाम २५ पञ्वप्रन्यी' था । सं० या० इतिहास, भाग १, बुद्धिसागर-व्याकरण प्रकरण । व्याकरण के ये पांचों ग्रन्य लोक में 'पञ्चपाठी' नाम से प्रसिद्ध हैं।
२. गणगठस्तु पूर्ववदेवाङ्गीक्रियते । न्यास भाग १, पृष्ठ २११ ॥ न