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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
१४ - धातुवृत्तिकार - पुरुषकार, पृष्ठ ८,२६,४७ ।
१५ -- पञ्जिकाकार - क्षीरत० पृष्ठ ५८, पं० २० पाठा० ।
१६ - पारायणिक - क्षीरत०, पृष्ठ १,२,१८२, ३२३ । पुरुषकार, पृष्ठ ८५,१११ ।
१७- भट्ट शशांकधर - क्षीरत०, पृष्ठ ७ ।
१८ - मल्ल - क्षीरत०, पृष्ठ ५४ ।
१६ - वर्धमान - धातुवृत्ति, पृष्ठ १३५ । धातुदीपिका, पृष्ठ ८ । २० - वृत्तिकृत् - ( धातुवृत्तिकृत् ) क्षीरत०, पृष्ठ २० ॥
२१ -- सभ्य - क्षीरत०, पृष्ठ १८, ३६ आदि बहुत्र । पुरुषकार, १० पृ० ११ ।
२२ – सुधाकर - पुरुषकार, पृष्ठ ११, २८, ३१ आदि बहुत्र । गणरत्नमहोदधि, पृष्ठ २३ ।
२३ -सुबोधिनीकार - धातुवृत्ति बहुत्र ।
२४ - स्वामी - क्षीरत०, पृष्ठ ५६ । २५ - हेवाकिन - क्षीरत०, पृष्ठ १२५ ।
विशेष
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(१) वर्धमान मैत्रेय का अनुयायी - सायण धातुवृत्ति ( पृष्ठ १३५ ) में लिखता है - वर्धमानोऽपि मैत्रेयवल्लकारवन्त मिदितं चापठत् । इससे विदित होता है कि वर्धमान मैत्रेय से उत्तरवर्ती हैं । एक २० वर्षमान गणरत्नमहोदधि का रचयिता है। यह वर्धमान उससे भिन्न
प्रतीत होता है ।
(२) धनपाल शाकटायन का अनुसारी - सायण ने भौवादिक मचि धातु के व्याख्यान में लिखा है- धनपालस्तावत् शाकटायनानुसारी (धातुवृत्ति पृष्ठ ६१ ) । इससे स्पष्ट है कि धनपाल शाकटायन २५ का उत्तरवर्ती है, और सम्भवतः शाकटायनीय धातपाठ का व्याख्या - कार है ।
(३) श्राभरणकार हरदत्त से उत्तरवर्ती -- सायण धातुवृत्ति में लिखता है -
'आभरणकारस्तु तालव्यान्तं पठित्वा 'वा निश' इति सूत्रमपि ३० स्वपाठानुगुणं पपाठ । तत 'नुम्विसर्जनीयशर्व्यवायेऽपि' इत्यत्र वृत्ति - न्यासपदमञ्जर्याद्यपर्यालोचन विजृम्भितम् । पृष्ठ २३४ ।