________________
५
१४०
संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
शाह अकबर के राज्य के प्रारम्भिक काल में सं० १६१३ - १६२५ (सन् १५५६ - १५६८) के मध्य की होगी । वोपदेवीय धातुपाठ - कविकल्पद्रुम
वोपदेव ने अपना धातुपाठ पद्यबद्ध लिखा है । इसका नाम कविकल्पद्रुम है । एक 'कविकल्पद्रुम' नामक ग्रन्थ हर्षकुलगणि ने भी लिखा है । यह हैम धातुपाठ पर हैं ( द्र० - भाग २ पृष्ठ १३७ ) । कविकल्पद्रुम की व्याख्या
१ – कविकामधेनु – कविकल्पद्रम पर ग्रन्थकार ने कविकामधेनु नाम की व्याख्या स्वयं लिखी है। एक 'कविकामधेनु' नामक ग्रन्थ १० दवव्याख्या पुरुषकार में पृष्ठ २६,६४ पर उद्धृत है । यह कविकल्पद्र की कामधेनुव्याख्या से भिन्न ग्रन्थ है । इसमें पाणिनीय सूत्र उद्धृत हैं। देखो - पुरुषकार पृष्ठ ६४ ।
२ - रामनाथकृत - सरस्वती भवन वाराणसी के संग्रह में वोपदेव के धातुपाठ पर रामनाथ ( रमानाथ ? ) की टीका सुरक्षित हैं । इस १५ हस्तलेख के अन्त में लेखनकाल १७८३ शकाब्द अङ्कित है । ग्रन्थकार का काल सन्दिग्ध है ।
१३- धातुदीपिका - यह टीकाग्रन्थ वासुदेव सार्वभौम भट्टाचार्य के आत्मज दुर्गादास विद्यावागीश ने लिखा है । दुर्गादास विद्यावागीश का काल ईसा की १७ शती माना जाता है । द्र० - पुरुषोत्तम देवीय २० परिभाषावृत्ति राजशाही संस्क० भूमिका पृष्ठ ह ।
धातुपाठ संबद्ध कतिपय ग्रन्थ तथा ग्रन्थकार
धातुपाठ से सम्बद्ध कतिपय ऐसे ग्रन्थों और ग्रन्थकारों के नाम धातुवृत्तियों में उपलब्ध होते हैं, जिनका सम्बन्ध किसी तन्त्रविशेष से अज्ञात है । उनका नामनिर्देश हम नीचे करते हैं, जिससे भावी लेखकों को उनके यथावत् सम्बन्ध के अनुसन्धान में सुभीता हो ।
२५
ग्रन्थनाम
१ – पञ्चिका - क्षीरतर्राङ्गणी, पृष्ठ ५८, ११० पर उद्धृत । २ - पारायण - क्षीरतरङ्गिणी, पृष्ठ १०,२६१,३०५ पर उद्धृत ।