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________________ धातुपाठ के प्रवक्ता और व्याख्यात (३) १३६ प्रथम भाग में कर चुके हैं। हर्षकीति सूरि ने व्याकरण छन्द काव्य स्तोत्र और ज्योतिष विषय के अनेक ग्रन्थ लिखे हैं। इन्होंने सारस्वत का धातुपाठ रचा था।' धातुपाठ के अन्तिम श्लोक से विदित होता है कि बाकलीवाल गोत्र के हेमसिंह खण्डेलवाल की अभ्यर्थना पर यह ग्रन्थ रचा था।' इस श्लोक को टीका के अनुसार हेमसिंह के प्रपितामह नेमदास ने टंक (=टोंक) नगर में पार्श्वनाथप्रासाद की रचना की थी। इस धातुपाठ में १८९१ धातुएं थीं। हर्षकीति सूरि ने स्वीय धातुपाठ की 'धातुतरङ्गिणो' नाम्नो व्याख्या लिखी थी। हर्षकीर्ति का संबन्ध सिकन्दर सूर से था। सिकन्दर सूर को १० हुमायूने सरहिन्द के समीप सं० १६१२ (सन् १५५५) में पराजित करके अपना राज्य पुनः प्रतिष्ठित किया था। धातुतरङ्गिणी की प्रशस्ति के ४ थे श्लोक में पद्मसुन्दर गणि का शाह अकबर से संबन्ध दर्शाया है। इससे स्पष्ट है कि हर्षकीर्ति ने धातुतरङ्गिणी की रचना १. तच्छिष्या हर्षकीया॑ह्व सूरयो व्यदधुः स्फुटम् । घातुपाठमिमं रम्यं सारस्वतमतानुगमम् ॥१४॥ २. खण्डेलवालसद्वशे हेमसिंहाभिधः सुधीः । तस्याभ्यर्थनया ह्यव निर्मितो नन्दतात् चिरम् ॥१५॥ ३. पंडेलवाल ज्ञातो बाकलीवाल गोत्रे टुकनगरे पार्श्वनाथ प्रासाद कारक नेमदास पुत्र सोह श्री जइतात पुत्र सा० गेहात तस्यात्मज साहहेम सिंहाभ्यर्थ- २० नयाऽऽग्रहेण धातुपाठः कृतः । [नेमदास-साह जइता--साहगेहा-साह हेमसिंह] ४. संख्याने सर्वधातूनामेतेषामेक संख्यया । अष्टादशशतान्येक नवत्युत्तरतां ययुः ॥२॥ ५. घातुपाठस्य टीकेयं नाम्नाधातुतरङ्गिणी।....॥६॥...- श्री."। श्रीमन्नागपुरीयतपगच्छाधिपभट्टारकश्रीहर्षकीर्तिसूरिविरचितं स्वोपज्ञघातु- २५ पाठविवरणं सम्पूर्णम् । समाप्तो (? प्ते)यं धातुतरङ्गिणी स्वश्रेयसे कल्याणमस्तु । ६. साहेः संसदि पद्मसुन्दरगणिजित्वा महापण्डितम् । क्षौम ग्राम सुरषा (शा)सनाद् अकबर श्रीसाहितोलब्धवान् ।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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