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________________ १३८ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास प्रक्रिया-ग्रन्थान्तर्गत धातुव्याख्याता विनयविजय गणि ने हैमलघुप्रक्रिया और मेघविजय ने हैमकौमुदी नाम के प्रक्रिया ग्रन्थ लिखे हैं । इनमें धातुपाठ की धातुओं का व्याख्यान उपलब्ध होता है। ५ १८-मलयगिरि (सं० ११८८-१२५०) १६-क्रमदीश्वर (सं० १२५० के लगभग) २०-सारस्वतकार (स० १२५० के लगभग) २१-वोपदेव (सं० १३२५-१३७०) २२-पद्मनाभदत्त (सं० १४०० वि०) । २३-विनयसागर (सं० १६६०-१७०० वि०) इन वैयाकरणों के शब्दानुशासनों का वर्णन हमने इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में यथास्थान किया है । इन शब्दानुशासनों के अपने-अपने धातुपाठ हैं और उन पर कतिपय वैयाकरणों के व्याख्यानन्थ भी उपलब्ध होते हैं। सारस्वत धातुपाठ हर्षकीर्ति नामक विद्वान् ने सारस्वत व्याकरण से संबद्ध धातुपाठ की रचना और उस पर धातुतरङ्गिणी नाम्नी स्वोपज्ञ व्याख्या लिखी है। इसका एक हस्तलेख विश्वेश्वरानन्द शोधसंस्थान होश्यिारपुर के संग्रह (सूचीपत्र भाग १, पृष्ठ ७०) तथा अनेक जैन भाण्डागारों २० में विद्यमान हैं। __ श्री अगरचन्द नाहटा का 'हर्षकोर्ति विरचित धातुतरङ्गिणी' शीर्षक एक लेख 'श्रमण' पत्रिका (वाराणसी) के वर्ष ३० अङ्क १२ (अक्टबर १९७६) में छपा है। हम उसके आधार पर ही निम्न पंक्तियां लिख रहे हैं२५ हर्षकीर्ति सूरि नागपुरीय तपा गच्छ के चन्द्रकीति सूरि के शिष्य थे।' चन्द्रकीति सूरि विरचित सारस्वत टीका का उल्लेख हम पूर्व १. श्रीमन्नागपुरीयाह्व-तपोगणकजारुणाः ।......... श्रीचन्द्रकीतिसूरीन्द्राश्चन्द्र चन्द्रवच्छ्वभूकीर्तयः ॥१३॥
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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