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११८ धातुपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता (३) १३७ प्रतिलिपि करने का है, यह अज्ञात है । सम्भावना यही है कि यह मूल ग्रन्थ के लेखन का काल है। ___ सम्पादक विक्रमविजय की भूल-हैम धातुपाठ-प्रवचूरि के सम्पादक ने लिखा हैं कि चन्द्र ने चुरादि में २, ३ ही धातुए पढ़ी हैं (द्र० पृष्ठ ११०-१११) । यह सम्पादक की भारी भूल है। प्रतीत होता है ५ कि उन्होंने मुद्रित चान्द्र धातुपाठ का अवलोकन ही नहीं किया।
४-प्रज्ञातनामा-टिप्पणीकार (सं० १५१६ वि०) हैम धातुपाठ पर किसी अज्ञातनामा विद्वान् की सं० १५१६ की लिखी हुई टिप्पणी भी मिलती है । द्र० मुनि दक्षविजय सम्पादित हैम घातुपाठ, सं १९९६ वि०।
५-पाख्यात-वृत्तिकार श्री जैन सत्यप्रकाश वर्ष ७, दीपोत्सवी अंक पृष्ठ ८९ पर किसी अज्ञातनामा लेखक की प्राख्यातवृत्ति का उल्लेख है।
६-श्री हर्षकुल गणि (१६ वीं शती वि०) श्री हर्षकुल गणि ने हैम धातुपाठ को पद्यबद्ध किया है। इसका १५ नाम कविकल्पद्र म है। इसमें ११ पल्लव हैं। प्रथम पल्लव में धातस्थ अनुबन्धों के फलों का निर्देश किया है। २-१० तक ६ पल्लवों में धातुपाठ के ६ गणों का संग्रह है। ११ वें पल्लव में सौत्र धातुओं का निर्देश है।
कविकल्पद्रुम की टीका-हर्ष कुल गणि ने अपने कविकल्पद्रुम पर २० धातुचिन्तामणि नाम की टीका भी लिखी थी। यह टीका सम्प्रति केवल ११ वें पल्लव पर ही उपलब्ध है। .. काल-हर्षकुलगणि ने ११ वें पल्लव के १० वें श्लोक की टीका के आगे लिखा है१४. नामधातुविशेषविस्तरस्तु श्रीगुणरत्नसूरिविरचितक्रियारत्नसमु- २५ श्चयग्रन्थादवसातव्यः । पृष्ठ ६१ ।
क्रियारत्नसमुच्चय का काल वि० सं० १४६६ है, यह हम पूर्व (पृष्ठ १३६-१३७) लिख चुके हैं । कविकल्पद्रुम के प्रकाशक ने हर्षकुलगणि का काल सामान्यतया वि० की १६ वीं शती माना है।