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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
द्वितीय भाग विषय-सूची
अध्याय विषय
- पृष्ठ १८-शब्दानुशासन के खिल-पाठ
पञ्चाङ्ग-व्याकरण पृष्ठ १ । खिल शब्द का अर्थ २। जिनेन्द्रबुद्धि और हरदत्त को भूल ३ । धातुपाठ प्रादि का शब्दानुशासन से पृथक्करण का कारण ४ । पृथक्करण से हानि ४ । सूत्रपाठ और खिलपाठ के समान प्रवक्ता ५। पाणिनि और खिलपाठ ५। पाणिनीय खिलपाठ और जिनेन्द्रबुद्धि ५। व्याकरणशास्त्र का एक अन्य अङ्ग ६ । व्याकरणशास्त्र से सम्बद्ध अन्य ग्रन्थ ६।। १९- शब्दों के धातुजत्व और धातु के स्वरूप पर विचार ७
शब्दों का वर्गीकरण- चतुर्घा विभाग ७, त्रिधा विभाग ८, द्विधा विभाग ८, एकविधत्व ६, त्रिधा विभाग की युवतता ६, नाम शब्दों का त्रिधा विभाग-यौगिक, योगरूढ, रूढ ६; अन्यथा विभागजाति शब्द, गुण शब्द, क्रिया शब्द, यदृच्छा शब्द है । यदृच्छा शब्द संस्कृत भाषा के प्रङ्ग नहीं-६; यदृच्छा शब्दों का रूढत्व १०, यदृच्छा शब्दों का वैयर्थ्य १० । सम्पूर्ण शब्दों का यौगिकत्व-११ । यौगिकत्व से रूढत्व की अोर गति ११, अव्ययों का रूढत्व १२, नाम शब्दों का योगरूढत्व और रूढत्व १२, रूढ माने गये शब्दों के विषय में विवाद १२ । उणादिसूत्रों के पार्थक्य का कारण-१३, उणादिसूत्रों के सम्बन्ध में भ्रान्ति १३, प्रौणादिक शब्दों के विषय में पाणिनीय मत १४ । सम्पूर्ण नामशब्दों की रूढत्व में परिणति-१५॥