________________
१३४
संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
ग्रन्थी व्याकरण लिखा था। यह हम इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में लिख चुके हैं । वहीं इस प्राचार्य के काल का भी निर्देश किया है।
धातुपाठ और उसकी वृत्ति बुद्धिसागर सूरि प्रोक्त धातुपाठ और उसके वृत्तिग्रन्थ का साक्षात् उल्लेख हमें कहीं प्राप्त नहीं हुआ। पुनरपि व्याकरण के पांच ग्रन्थों में धातुपाठ का अन्तर्भाव होने तथा हैमलिङ्गानुशासन के स्वोपज्ञविवरण (पृष्ठ १००) तथा हैम अभिधानचिन्तामणि (पृष्ठ २४६) में लिङ्गानुशासन का उद्धरण होने से धातुपाठ का प्रवचन तो निश्चित है।
५
-::
१० , १६. भद्रेश्वर सूरि (सं० १२०० से पूर्व वि०)
प्राचार्य भद्रेश्वर सूरिविरचित दीपक व्याकरण और उसके काल आदि के विषय में इस ग्रन्य के प्रथम भाग में लिख चुके हैं।
धातुपाठ और उसकी व्याख्या सायण ने धातुवृत्ति में श्रीभद्र नाम से भद्रेश्वर सूरि के धातुपाठ१५ विषयक अनेक मत उद्धृत किए हैं। उनसे भद्र श्वर सूरि का धातु
पाठप्रवक्तृत्व स्पष्ट है । धातुवृत्ति में कुछ उद्धरण ऐसे भी हैं, जिनसे श्रीभद्रकृत धातुवृत्ति का भी परिज्ञान होता है । यथा
१-एवं च 'लक्षज्' इति पठित्वा 'जित्करणादन्येभ्यश्चुरादिभ्यो णिचश्च इति तङ् न भवति' इति च श्रीभद्रवचनमपि प्रत्युक्तम् ।
पृष्ठ ३८६ । २–अत्र श्रीभद्रादयो 'दीर्घोच्चारणसामर्थ्यात् पक्षे णिज् न' इति ।
पृष्ठ ३७६ । इससे अधिक भद्रेश्वर सूरि के धातुपाठ और उसकी वृत्ति के विषय में हम कुछ नहीं जानते । .