________________
धातुपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता (३)
१४. भोजदेव (सं० २०७५-१११०)
धाराधीश महाराज भोजदेव के सरस्वतीकण्ठाभरण नामक व्याकरण और उसके काल आदि के विषय में इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में विस्तार से लिख चुके हैं । भोजीय धातुपाठ
१३३
महाराजा भोजदेव ने अपने शब्दानुशासन में धातुपाठ को छोड़कर अन्य सभी अङ्गों को यथास्थान सन्निवेश कर दिया, केवल धातुपाठ का पृथक् प्रवचन किया। भोजदेव के धातुपाठ के उद्धरण क्षीरतरङ्गिणी और माघवीया धातुवृत्ति आदि ग्रन्थों में भरे पड़े हैं । वृत्तिकार
भोजी धातुपाठ के किसी वृत्तिकार का हमें साक्षात् परिज्ञान नहीं है । क्षीरस्वामी और सायण ने भोज के धातुविषयक अनेक ऐसे मत उद्धृत किए हैं, जो उसके वृत्ति- ग्रन्थ के ही हो सकते हैं । नाथीय धातुवृत्ति
१०
हमने पाणिनीय धातुपाठ के वृत्तिकार प्रकरण में संख्या ८ पर १५ नाथीय घातुवृत्ति का निर्देश किया है । पदे पदैकदेश न्याय से यदि नाथी शब्द दण्डनाथीय का निर्देशक हो, तो यह भोजीय धातुपाठ पर दण्डनाथविरचित धातुवृत्ति ग्रन्थ हो सकता है, परन्तु इस विषय का साक्षात् कोई प्रमाण हमें अभी उपलब्ध नहीं हुआ ।
प्रक्रियान्तर्गत धातुव्याख्या
सं० व्या० शास्त्र का इतिहास, भाग १ में सरस्वतीकण्ठाभरण पर लिखे गए पदसिन्धु -सेतु नामक प्रक्रियाग्रन्थ का उल्लेख किया है, उसमें श्राख्यातप्रकिया में धातुव्याख्यान भी अवश्य रहा होगा । इस ग्रन्थ को प्रक्रियकौमुदी के टीकाकार विट्ठल ने ( भाग २, पृष्ठ ३१३) उद्धृत किया है । अतः इसका काल वि० सं० १५०० से २५ पूर्व है।
-::---
१५. बुद्धिसागर सूरि (सं० १०८० वि० )
आचार्य बुद्धिसागर सूरि ने ७, ८ सहस्र श्लोकपरिमाण का पञ्च
२०