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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
२-धनपाल धनपाल ने भी शाकटायन धातुपाठ पर एक. व्याख्या लिखी थी, ऐसी सम्भावना है।
३-प्रक्रिया-ग्रन्थकार पाल्यकीति के व्याकरण पर अभयचन्द्राचार्य ने प्रक्रिया-संग्रह, भावसेन विद्य देव ने शाकटायन-टीका तथा दयालपालमुनि ने रूपसिद्धि नाम के प्रक्रियाग्रन्थ रचे थे (द्र० प्रथम भाग) इनमें प्रसंगवश धातुपाठ का भी कुछ अंश व्याख्यात हो गया है।
-::१३. शिवस्वामी (सं० ६१४-६४०) शिवस्वामीप्रोक्त शब्दानुशासन तथा उसके काल आदि के विषय में इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में लिख चुके हैं।
धातुपाठ और उसकी वृत्ति शिवस्वामी ने धातुपाठ पर सम्भवतः कोई वृत्तिग्रन्थ लिखा था। क्षीरतरङ्गिणी तथा माधवीया धातुवृत्ति में शिवस्वामी के धातुपाठ१५ विषयक अनेक मत उद्धृत हैं । ये उद्धरण सम्भवतः उसके धातुच्या
ख्यान से ही उद्धृत किए होंगे। __ हम नीचे शिवस्वामी के नाम से उद्धृत कतिपय ऐसे पाठ लिखते हैं, जिन से शिवस्वामी का धातुपाठप्रवक्तृत्व तथा उसका व्याख्यातृत्व
स्पष्ट हो जाता है। यथा२० १-धुन इति हामु शिवस्वामी दीर्घमाह । क्षीरतरङ्गिणी ५॥१०॥ २-शिवस्वामिकाश्यपौ तु [धुन धातु] दीर्घान्तमाहतुः ।
धातुवृत्ति, पृष्ठ ३१६ ॥ ३-चान्तोऽयं [सश्च] इति शिवः । क्षीरतरङ्गिणी १।१२२॥ ४--शिवस्वामी वकरोप, [व] पपाठ ।
धातुवृत्ति, पृष्ठ ३५७ ॥ इससे अधिक शिवस्वामी के धातुपाठ और उसकी धातुवृत्ति के विषय में हम कुछ नहीं जानते।